सावन में शिवजी की कथा: जब भोलेनाथ ने अपनी जटाओं में समाई गंगा20 Jul 25

सावन में शिवजी की कथा: जब भोलेनाथ ने अपनी जटाओं में समाई गंगा

सावन का पावन महीना शिवभक्तों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। यह समय भगवान शिव की भक्ति, तपस्या और उनकी दिव्य लीलाओं को याद करने का होता है। ऐसे ही एक प्रसंग में भगवान शिव की करुणा, शक्ति और उनकी भक्तों के प्रति अपार स्नेह की झलक मिलती है—जब उन्होंने उग्रगति से बहती गंगा को अपनी जटाओं में रोककर धरती पर धीरे-धीरे प्रवाहित किया। पुराणों के अनुसार, जब राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए माँ गंगा को पृथ्वी पर लाने का संकल्प लिया, तो गंगा जी अपनी तेज़ धारा से पूरी पृथ्वी को बहा ले जाने के लिए तत्पर थीं। इस संकट को भांपते हुए राजा भगीरथ ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे गंगा को अपनी जटाओं में समाहित कर लें। भोलेनाथ ने भक्त की पुकार सुनी और अपनी विशाल जटाओं में गंगा को समेट लिया। गंगा जी की उग्र धारा जब शिव की जटाओं में समाई, तो वह शांत हो गई और फिर धीरे-धीरे पृथ्वी पर उतरी। यही वह क्षण था जब भगवान शिव ने न केवल एक राजा की तपस्या का सम्मान किया, बल्कि समस्त सृष्टि को विनाश से बचाया।

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"डॉ. भीम राव अंबेडकर की प्रेरणादायक यात्रा: एक समाज सुधारक और भारतीय संविधान के निर्माता"

डॉ. भीम राव अंबेडकर, जिन्हें स्नेहपूर्वक बाबासाहेब के नाम से जाना जाता है, 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू नामक छोटे से नगर में जन्मे थे। वे महार जाति के एक ऐसे परिवार में जन्मे थे, जिसे उस समय समाज में भयंकर भेदभाव का सामना करना पड़ता था और जिसे 'अछूत' माना जाता था। बावजूद इसके, अंबेडकर के पिता, सूबेदार रामजी, ने यह सुनिश्चित किया कि उनके बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त करें। उन्होंने सैन्य परिवारों को दी जाने वाली सुविधाओं का पूरा लाभ उठाया और अपने बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरित किया। यह प्रेरणा उन्हें न केवल व्यक्तिगत संघर्षों से जूझने की ताकत देती थी, बल्कि भारतीय समाज में समानता, न्याय और अधिकारों की स्थापना के लिए उनका मार्गदर्शन भी करती थी।

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