सावन में शिवजी की कथा: जब भोलेनाथ ने अपनी जटाओं में समाई गंगा20 Jul 25

सावन में शिवजी की कथा: जब भोलेनाथ ने अपनी जटाओं में समाई गंगा

(UNA) : सावन का पावन महीना चल रहा है और इस समय भगवान शिव की महिमा का बखान करना अद्भुत अनुभव है। तो आइए, शिवजी की एक ऐसी कहानी सुनते हैं, जो उनके सहज स्वभाव, भक्तों के प्रति प्रेम और उनकी असीम शक्ति को दर्शाती है, विशेषकर कैसे उन्होंने अपने भक्तों के कष्ट हरने के लिए अपनी जटाओं में गंगा को धारण किया।

बहुत समय पहले की बात है, पृथ्वी पर भयंकर अकाल पड़ा। यह कोई सामान्य सूखा नहीं था, बल्कि ऐसा प्रचंड अकाल था कि प्रकृति का कण-कण मुरझा रहा था। नदियाँ सूखकर रेत के टीलों में बदल चुकी थीं, झीलें और तालाबों में दरारें पड़ गई थीं, और धरती की कोख से नमी का एक कतरा भी नहीं निकल रहा था। खेत बंजर हो गए थे और फसलें उगने की कोई उम्मीद नहीं थी। चारों ओर त्राहि-त्राहि मची हुई थी, हर प्राणी जल की एक बूँद के लिए तरस रहा था। मनुष्य भूख और प्यास से व्याकुल थे, पशु-पक्षी अपने घोंसलों और बिलों में बेहाल थे। यहाँ तक कि देवलोक में भी इस सूखे का प्रभाव महसूस किया जाने लगा था, क्योंकि पृथ्वी पर होने वाले यज्ञ और अनुष्ठान बंद हो गए थे।

इस विकट स्थिति से निपटने के लिए सभी जीव-जंतु, मनुष्य और देवता भी परेशान थे। उन्होंने पहले ब्रह्मा और विष्णु से सहायता मांगी। देवों ने अपनी सभाएँ बुलाईं, गहन चिंतन किया और कई उपाय सोचे, लेकिन इस भीषण परिस्थिति का कोई हल नहीं निकल पा रहा था। सृष्टि का संतुलन बिगड़ता जा रहा था और विनाश का खतरा मंडरा रहा था। अंततः, सभी देवों और ऋषि-मुनियों ने मिलकर एकमत से निर्णय लिया कि अब केवल भगवान शिव ही इस संकट से मुक्ति दिला सकते हैं। वे ही सृष्टि के संहारक, पालक और कल्याणकर्ता हैं, जिनकी कृपा से असंभव भी संभव हो जाता है।

सभी देवगण, ऋषि-मुनि और पीड़ित प्राणी कैलाश पर्वत की ओर चल पड़े। कैलाश की बर्फीली चोटियों पर पहुँचकर उन्होंने देखा कि भगवान शिव अपनी गहरी समाधि में लीन हैं। उनके मुखमंडल पर असीम शांति और अलौकिक तेज विराजमान था। सभी ने अत्यंत विनम्रता और श्रद्धा से स्तुति और प्रार्थना शुरू की। उन्होंने अपनी व्यथा, पृथ्वी की दुर्दशा और जीवधारियों की पीड़ा को विस्तार से बताया, और इस भीषण अकाल से मुक्ति दिलाने की करुण विनती की। वायुमंडल शिव की प्रार्थनाओं से गूँज उठा।

भगवान शिव ने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं। उनकी दृष्टि में सृष्टि की पीड़ा साफ झलक रही थी और उनका हृदय करुणा से भर उठा। उन्होंने देखा कि धरती पर जीवन मुरझा रहा है, हर ओर निराशा और वेदना है, और सभी को जीवनदायिनी जल की आवश्यकता है। शिवजी ने तुरंत ही स्थिति की गंभीरता को समझ लिया और अपने परम ज्ञान से इस समस्या का मूल कारण जान लिया।

तब भगवान शिव ने एक अद्भुत और कल्याणकारी लीला रचने का निश्चय किया। उन्होंने अपने सिर पर धारण की हुई देवी गंगा को पृथ्वी पर प्रवाहित करने का विचार किया। गंगा स्वर्ग में बहने वाली एक पवित्र और अत्यंत वेगवती नदी थीं। यह जानते हुए कि गंगा का वेग इतना प्रचंड है कि यदि वे सीधे पृथ्वी पर गिरतीं, तो उनकी शक्ति से पूरी धरती जलमग्न हो जाती और भारी प्रलय आ जाती, सभी देवगण चिंतित हो गए। उन्हें भय था कि एक संकट से निकलने के प्रयास में कहीं दूसरा, अधिक बड़ा संकट न आ जाए।

लेकिन भगवान शिव ने अपनी योगिक शक्ति और करुणा से सभी भय को दूर कर दिया। उन्होंने अपनी जटाओं (लंबे, घने बालों) को फैलाया और उन्हें विशालकाय पर्वतों की तरह आकाश में विस्तृत कर दिया। जैसे ही गंगा अपनी पूरी शक्ति और वेग के साथ स्वर्ग से पृथ्वी की ओर प्रवाहित हुईं, शिवजी ने उन्हें अपनी जटाओं में समेट लिया। गंगा की विशाल धारा शिव की जटाओं के भँवर में समा गई, और उनकी जटाओं से कई छोटी-छोटी, नियंत्रित धाराओं में बँटकर धीरे-धीरे पृथ्वी पर उतरने लगी। यह दृश्य अत्यंत विस्मयकारी था - जैसे हजारों धाराएँ एक साथ एक ही स्रोत से फूट रही हों, पर नियंत्रित और शांत होकर।

जैसे ही गंगा की पवित्र और जीवनदायिनी धाराएँ धरती पर गिरीं, सूखी नदियाँ फिर से पूरे वेग से बहने लगीं, खेत बंजरता छोड़कर हरे-भरे हो गए और वृक्षों पर नए पत्ते आ गए। प्यासे जीव-जंतुओं को अमृत समान जल मिला, और चारों ओर जीवन का संचार हो गया। प्रकृति खिल उठी, पशु-पक्षी चहकने लगे, और मनुष्य के चेहरों पर फिर से खुशी और आशा लौट आई। सभी प्राणियों में एक नई ऊर्जा और उत्साह आ गया। देवगण और पृथ्वी के निवासी शिवजी की इस असीम कृपा से अत्यंत प्रसन्न हुए और उनकी जय-जयकार करने लगे। उन्होंने शिवजी को गंगाधर नाम से पुकारा, क्योंकि उन्होंने गंगा को धारण कर सृष्टि का कल्याण किया था, उन्हें जीवनदान दिया था। यह नाम शिवजी के दयालु और पालक स्वरूप का प्रतीक बन गया।

यह कहानी हमें सिखाती है कि भगवान शिव कितने कृपालु, दयालु और अपने भक्तों के प्रति समर्पित हैं। वे अपने भक्तों की पुकार सुनते हैं और उनकी रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, अपनी शक्ति का उपयोग करके असंभव को संभव कर सकते हैं। सावन का महीना शिवजी की इसी उदारता, उनकी कल्याणकारी स्वरूप और उनके सृष्टि पालक रूप को याद दिलाता है। इस पवित्र महीने में शिवजी की पूजा-अर्चना करने से न केवल हमें आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि हमें यह भी स्मरण होता है कि जब भी हम संकट में हों, चाहे वह व्यक्तिगत हो या सामूहिक, शिव शंभु सदैव हमारे साथ हैं। उनकी कृपा से ही सृष्टि में संतुलन बना हुआ है और जीवन का चक्र निर्बाध गति से चलता रहता है। सावन का हर सोमवार और शिवरात्रि हमें उनकी इसी असीम शक्ति और करुणा को नमन करने का अवसर प्रदान करते हैं। उनकी जय हो! - UNA

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सावन में शिवजी की कथा: जब भोलेनाथ ने अपनी जटाओं में समाई गंगा

सावन का पावन महीना शिवभक्तों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। यह समय भगवान शिव की भक्ति, तपस्या और उनकी दिव्य लीलाओं को याद करने का होता है। ऐसे ही एक प्रसंग में भगवान शिव की करुणा, शक्ति और उनकी भक्तों के प्रति अपार स्नेह की झलक मिलती है—जब उन्होंने उग्रगति से बहती गंगा को अपनी जटाओं में रोककर धरती पर धीरे-धीरे प्रवाहित किया। पुराणों के अनुसार, जब राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए माँ गंगा को पृथ्वी पर लाने का संकल्प लिया, तो गंगा जी अपनी तेज़ धारा से पूरी पृथ्वी को बहा ले जाने के लिए तत्पर थीं। इस संकट को भांपते हुए राजा भगीरथ ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे गंगा को अपनी जटाओं में समाहित कर लें। भोलेनाथ ने भक्त की पुकार सुनी और अपनी विशाल जटाओं में गंगा को समेट लिया। गंगा जी की उग्र धारा जब शिव की जटाओं में समाई, तो वह शांत हो गई और फिर धीरे-धीरे पृथ्वी पर उतरी। यही वह क्षण था जब भगवान शिव ने न केवल एक राजा की तपस्या का सम्मान किया, बल्कि समस्त सृष्टि को विनाश से बचाया।