कमोडिटी मार्केट में सतर्क शुरुआत: अमेरिकी महंगाई आंकड़े और पूर्वी यूरोप तनाव पर नज़र

कमोडिटी मार्केट में सतर्क शुरुआत: अमेरिकी महंगाई आंकड़े और पूर्वी यूरोप तनाव पर नज़र

कमोडिटी बाज़ार ने इस हफ्ते की शुरुआत सतर्कता के साथ की, क्योंकि निवेशक एक ओर अमेरिकी महंगाई को लेकर चिंतित हैं तो दूसरी ओर पूर्वी यूरोप में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव पर भी नज़र बनाए हुए हैं। कारोबारी अब नए संकेतों की तलाश में हैं और सभी की निगाहें आगामी यू.एस. पर्सनल कंजम्प्शन एक्सपेंडिचर (PCE) प्राइस इंडेक्स पर टिकी हैं, जिसे फेडरल रिज़र्व महंगाई का सबसे अहम पैमाना मानता है। विश्लेषकों का मानना है कि यह आंकड़ा फेड की ब्याज दर नीति की दिशा तय करने में निर्णायक साबित होगा। हाल ही में आए नीति निर्माताओं के बयानों से साफ है कि जब तक महंगाई दर स्पष्ट रूप से 2% लक्ष्य की ओर नहीं झुकती, तब तक दरों में कटौती की संभावना कम है। यदि आंकड़े अपेक्षा से मजबूत आते हैं, तो "लंबे समय तक ऊँची दरें" की धारणा और मज़बूत होगी, जिससे अमेरिकी डॉलर को सहारा मिलेगा। इसका सीधा असर सोना और तांबा जैसी कमोडिटी पर दबाव डालने के साथ-साथ औद्योगिक कच्चे माल की मांग को भी कम कर सकता है।

21 Sep 2025

H-1B वीज़ा शुल्क बढ़ोतरी की अटकलों से आईटी शेयरों में गिरावट, भारतीय कंपनियों पर दबाव

अमेरिका की ट्रंप प्रशासन द्वारा एच-1बी वीज़ा शुल्क में भारी बढ़ोतरी पर विचार किए जाने की ख़बरों के बाद भारत की शीर्ष आईटी कंपनियों के शेयर मंगलवार को तेज़ी से गिर गए। यह प्रस्ताव अमेरिकी आव्रजन नीति को कड़ा करने की व्यापक योजना का हिस्सा माना जा रहा है, जिसके तहत विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करना कंपनियों के लिए और महँगा हो जाएगा। इसका सबसे बड़ा असर भारतीय आईटी सेवा दिग्गजों पर पड़ सकता है। इंफोसिस और कॉग्निज़ेंट, जिनकी अमेरिका में बड़ी मौजूदगी है और जिनका बड़ा कार्यबल एच-1बी वीज़ा पर तैनात है, उनके शेयरों में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई। वहीं टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ (TCS) और विप्रो जैसी अन्य प्रमुख कंपनियों के शेयर भी दबाव में आ गए। निवेशकों की चिंता है कि इस कदम से भारतीय आईटी कंपनियों की परिचालन लागत बढ़ेगी और उनके मुनाफ़े के मार्जिन पर सीधा असर पड़ेगा।

20 Sep 25

फेड दर कटौती की उम्मीदों में कमी और ट्रेड वार्ता से दबाव, तीन दिन की तेजी के बाद फिसले भारतीय शेयर

भारतीय शेयर बाज़ार शुक्रवार को गिरावट के साथ बंद हुए, जिससे लगातार तीन दिनों से जारी तेजी पर रोक लग गई। निवेशकों ने अमेरिकी फेडरल रिज़र्व की ब्याज दरों में तेज कटौती की उम्मीदों के कमज़ोर पड़ने और वॉशिंगटन के साथ चल रही व्यापार वार्ताओं को देखते हुए सतर्क रुख अपनाया। सेंसेक्स और निफ़्टी 50 दोनों ही कमजोर शुरुआत के बाद पूरे सत्र के दौरान लाल निशान में बने रहे। बाज़ार की यह वापसी उस समय हुई जब आक्रामक फेड दर कटौती को लेकर बनी उम्मीदें टूटने लगीं और चिंता बढ़ी कि उच्च अमेरिकी ब्याज दरें लंबे समय तक बनी रह सकती हैं। इसका असर उभरते बाज़ारों में विदेशी निवेश की आमद पर पड़ सकता है। विश्लेषकों का कहना है कि हालिया तेजी, जिसने इंडेक्स को कई हफ़्तों के उच्च स्तर तक पहुँचाया था, के बाद मुनाफ़ा वसूली ने भी इस गिरावट को और तेज़ कर दिया।

19 Sep 25

कॉरपोरेट भारत का कानूनी और प्रोफेशनल सेवाओं पर खर्च 11% बढ़कर पहुँचा ₹62,146 करोड़

कॉरपोरेट भारत ने पिछले वित्तीय वर्ष में कानूनी और प्रोफेशनल सेवाओं पर 11% अधिक खर्च किया, जो बढ़कर ₹62,146 करोड़ तक पहुँच गया। इस बढ़ोतरी के पीछे वैश्विक विस्तार, बढ़ते विवाद और नियामकीय जटिलताओं का बड़ा असर रहा है। निफ़्टी 500 कंपनियों के विश्लेषण से पता चलता है कि क्रॉस-बॉर्डर मर्जर और एक्विज़िशन (M&A) इस वृद्धि के प्रमुख कारणों में से एक रहे। विदेशी सौदों के लिए भारतीय कंपनियों को गहन ड्यू डिलिजेंस, आर्बिट्रेशन प्रावधानों और अलग-अलग कानूनी व्यवस्थाओं के अनुपालन की आवश्यकता पड़ी। इन सभी कारकों ने पेशेवर सेवाओं की लागत को उल्लेखनीय रूप से बढ़ा दिया। यह रुझान इस बात का संकेत है कि जैसे-जैसे भारतीय कंपनियाँ वैश्विक बाज़ार में अपनी उपस्थिति मज़बूत कर रही हैं, वैसे-वैसे उन्हें कानूनी और प्रोफेशनल सेवाओं पर और अधिक निवेश करना पड़ रहा है।

19 Sep 25

SEBI की जाँच में गड़बड़ी के सबूत न मिलने पर अडानी समूह के शेयरों में तेज़ उछाल

अडानी समूह की कंपनियों के शेयरों में मंगलवार को ज़बरदस्त उछाल देखने को मिला, जहाँ कुछ शेयरों में 10% तक की बढ़त दर्ज की गई। यह तेजी उस समय आई जब ख़बरें सामने आईं कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने अपनी जाँच में स्टॉक मैनिपुलेशन के सबूत नहीं पाए हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस साल की शुरुआत में यह जाँच शुरू की गई थी। इसका कारण अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिन्डनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए आरोप थे, जिसमें अडानी समूह पर शेयरों की हेरफेर और अकाउंटिंग धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया था। हालाँकि, ताज़ा रिपोर्ट्स के अनुसार SEBI की समीक्षा में न तो फंड फ्लो के माध्यम से शेयर की कीमतें बढ़ाने का कोई सबूत मिला और न ही अडानी समूह या उसके चेयरमैन गौतम अडानी से जुड़े इनसाइडर ट्रेडिंग नियमों के उल्लंघन के प्रमाण पाए गए।

19 Sep 25

2025 में भारतीय शेयर बाज़ार की मुश्किलें: ऊँचे वैल्यूएशन और विदेशी निवेश की निकासी से दबाव

साल 2025 भारतीय शेयर बाज़ार के लिए कठिन दौर लेकर आया है। बेंचमार्क इंडेक्स न केवल कमजोर रिटर्न दे रहे हैं, बल्कि वैश्विक बाज़ारों से भी पिछड़ रहे हैं। ऊँचे वैल्यूएशन, कंपनियों की धीमी कमाई और विदेशी निवेशकों की लगातार निकासी ने दलाल स्ट्रीट पर भारी दबाव डाला है। कई सालों तक लगातार बढ़त दर्ज करने के बाद अब एसएंडपी बीएसई सेंसेक्स अपनी रफ्तार बनाए रखने में नाकाम रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसका मुख्य कारण ऊँचे स्टॉक वैल्यूएशन और मामूली अर्निंग ग्रोथ के बीच का असंतुलन है। ज़्यादातर कंपनियाँ बाज़ार की बड़ी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई हैं, जिसके चलते एक ज़रूरी करेक्शन देखने को मिला है। यह स्थिति निवेशकों को सतर्क कर रही है और आने वाले समय में बाज़ार की दिशा को लेकर संशय और बढ़ गया है।

18 Sep 25

भारत में बढ़ा iPhone उत्पादन: अमेरिका के लिए टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स का बड़ा कदम

एप्पल ने अमेरिका के लिए iPhone उत्पादन को भारत की ओर मोड़ना काफी पहले शुरू कर दिया था, जब पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ से जुड़ी चर्चाएँ शुरू भी नहीं की थीं। टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स के वित्तीय खुलासों से यह साफ होता है कि एप्पल की हिस्सेदारी कंपनी के वित्त वर्ष 2025 की आय में तेजी से बढ़ी है। यह कदम इस बात का संकेत है कि एप्पल अब चीन पर अपनी निर्भरता कम करते हुए भारत को एक नए विनिर्माण केंद्र के रूप में तेजी से विकसित कर रहा है। अब तक टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स की ज़्यादातर आपूर्ति ताइवान के बाज़ार और भारत की घरेलू मांग के लिए होती रही थी। लेकिन ताज़ा आँकड़े बताते हैं कि एप्पल से जुड़ी आय में बड़ा इज़ाफ़ा हुआ है। यह बदलाव स्पष्ट करता है कि कंपनी ने अमेरिकी बाज़ार के लिए iPhone असेंबलिंग और आपूर्ति में बड़ा विस्तार किया है। एप्पल की यह रणनीति न केवल भारत की विनिर्माण क्षमता को मजबूत कर रही है बल्कि अमेरिका जैसे महत्वपूर्ण बाज़ार में सप्लाई चेन की निरंतरता भी सुनिश्चित कर रही है।

18 Sep 25

वोडाफोन-आइडिया ने एजीआर बकाया गणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया

मुश्किलों से जूझ रही टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन-आइडिया ने एक बार फिर एजीआर (एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू) बकाया को लेकर सुप्रीम कोर्ट में नई याचिका दाखिल की है। कंपनी ने दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा वित्त वर्ष 2018–19 के लिए की गई संशोधित गणना को चुनौती दी है। विभाग ने लगभग 2,774 करोड़ रुपये की अतिरिक्त माँग पेश की है, जिसे कंपनी गलत ठहरा रही है। वोडाफोन-आइडिया का तर्क है कि इस आकलन में गंभीर त्रुटियाँ हैं, जिनमें राजस्व का दोहरी गिनती और पहले से किए गए भुगतानों को नज़रअंदाज़ करना शामिल है। यह मामला एक बार फिर टेलीकॉम क्षेत्र में एजीआर विवाद को सुर्खियों में ले आया है और विशेषज्ञों का मानना है कि इसका असर कंपनी के भविष्य और पूरे उद्योग पर गहराई से पड़ सकता है।

09 Sep 25

फेड की दरों में कटौती की उम्मीदों से सोना पहुँचा ऐतिहासिक ऊँचाई पर

अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतों ने नया इतिहास रच दिया है। निवेशकों के बीच यह विश्वास लगातार मजबूत हो रहा है कि अमेरिकी फेडरल रिज़र्व जल्द ही ब्याज दरों में कटौती करेगा। इसी उम्मीद के कारण सोने की माँग तेजी से बढ़ी और इसकी कीमत रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई। स्पॉट गोल्ड लगभग 3,634 डॉलर प्रति औंस तक चढ़ गया और कुछ समय के लिए 3,646 डॉलर को भी छू गया, जबकि अमेरिकी वायदा बाजार में सोना करीब 3,677 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर कारोबार करता देखा गया। विशेषज्ञों का मानना है कि ब्याज दरों में संभावित कमी से डॉलर पर दबाव बनेगा और निवेशक सुरक्षित विकल्प के तौर पर सोने में अधिक निवेश करेंगे। यही कारण है कि पीली धातु का आकर्षण इस समय वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक दिखाई दे रहा है।

09 Sep 25

भारत में तेजी से कदम बढ़ा रहा स्टारलिंक, ग्राउंड स्टेशन और स्थानीय साझेदारी से तैयारी तेज

स्पेसएक्स की सैटेलाइट इंटरनेट सेवा शाखा स्टारलिंक ने भारत में अपने प्रवेश को लेकर तैयारियाँ तेज कर दी हैं। कंपनी अंतिम नियामकीय मंज़ूरी का इंतज़ार करते हुए भी बुनियादी ढाँचे और स्थानीय साझेदारियों पर तेजी से काम कर रही है। देशभर में 17 स्थानों पर ग्राउंड स्टेशन यानी “गेटवे” स्थापित करने की योजना पहले ही तय की जा चुकी है। ये केंद्र स्टारलिंक के लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) उपग्रह नेटवर्क को भारत की फाइबर ऑप्टिक बैकबोन से जोड़ेंगे, जिससे ग्राहकों को तेज़ इंटरनेट स्पीड और कम लेटेंसी का लाभ मिलेगा। इस पहल को भारत में डिजिटल कनेक्टिविटी के नए युग की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।

07 Sep 25

Related news

19 Sep 25

कॉरपोरेट भारत का कानूनी और प्रोफेशनल सेवाओं पर खर्च 11% बढ़कर पहुँचा ₹62,146 करोड़

कॉरपोरेट भारत ने पिछले वित्तीय वर्ष में कानूनी और प्रोफेशनल सेवाओं पर 11% अधिक खर्च किया, जो बढ़कर ₹62,146 करोड़ तक पहुँच गया। इस बढ़ोतरी के पीछे वैश्विक विस्तार, बढ़ते विवाद और नियामकीय जटिलताओं का बड़ा असर रहा है। निफ़्टी 500 कंपनियों के विश्लेषण से पता चलता है कि क्रॉस-बॉर्डर मर्जर और एक्विज़िशन (M&A) इस वृद्धि के प्रमुख कारणों में से एक रहे। विदेशी सौदों के लिए भारतीय कंपनियों को गहन ड्यू डिलिजेंस, आर्बिट्रेशन प्रावधानों और अलग-अलग कानूनी व्यवस्थाओं के अनुपालन की आवश्यकता पड़ी। इन सभी कारकों ने पेशेवर सेवाओं की लागत को उल्लेखनीय रूप से बढ़ा दिया। यह रुझान इस बात का संकेत है कि जैसे-जैसे भारतीय कंपनियाँ वैश्विक बाज़ार में अपनी उपस्थिति मज़बूत कर रही हैं, वैसे-वैसे उन्हें कानूनी और प्रोफेशनल सेवाओं पर और अधिक निवेश करना पड़ रहा है।

HIGHLIGHTS

कमोडिटी मार्केट में सतर्क शुरुआत: अमेरिकी महंगाई आंकड़े और पूर्वी यूरोप तनाव पर नज़र

Updated : 21 Sep 252025

कमोडिटी मार्केट में सतर्क शुरुआत: अमेरिकी महंगाई आंकड़े और पूर्वी यूरोप तनाव पर नज़र

कमोडिटी बाज़ार ने इस हफ्ते की शुरुआत सतर्कता के साथ की, क्योंकि निवेशक एक ओर अमेरिकी महंगाई को लेकर चिंतित हैं तो दूसरी ओर पूर्वी यूरोप में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव पर भी नज़र बनाए हुए हैं। कारोबारी अब नए संकेतों की तलाश में हैं और सभी की निगाहें आगामी यू.एस. पर्सनल कंजम्प्शन एक्सपेंडिचर (PCE) प्राइस इंडेक्स पर टिकी हैं, जिसे फेडरल रिज़र्व महंगाई का सबसे अहम पैमाना मानता है। विश्लेषकों का मानना है कि यह आंकड़ा फेड की ब्याज दर नीति की दिशा तय करने में निर्णायक साबित होगा। हाल ही में आए नीति निर्माताओं के बयानों से साफ है कि जब तक महंगाई दर स्पष्ट रूप से 2% लक्ष्य की ओर नहीं झुकती, तब तक दरों में कटौती की संभावना कम है। यदि आंकड़े अपेक्षा से मजबूत आते हैं, तो "लंबे समय तक ऊँची दरें" की धारणा और मज़बूत होगी, जिससे अमेरिकी डॉलर को सहारा मिलेगा। इसका सीधा असर सोना और तांबा जैसी कमोडिटी पर दबाव डालने के साथ-साथ औद्योगिक कच्चे माल की मांग को भी कम कर सकता है।

Top Stories

SEBI की जाँच में गड़बड़ी के सबूत न मिलने पर अडानी समूह के शेयरों में तेज़ उछाल19 Sep 25

SEBI की जाँच में गड़बड़ी के सबूत न मिलने पर अडानी समूह के शेयरों में तेज़ उछाल

अडानी समूह की कंपनियों के शेयरों में मंगलवार को ज़बरदस्त उछाल देखने को मिला, जहाँ कुछ शेयरों में 10% तक की बढ़त दर्ज की गई। यह तेजी उस समय आई जब ख़बरें सामने आईं कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने अपनी जाँच में स्टॉक मैनिपुलेशन के सबूत नहीं पाए हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस साल की शुरुआत में यह जाँच शुरू की गई थी। इसका कारण अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिन्डनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए आरोप थे, जिसमें अडानी समूह पर शेयरों की हेरफेर और अकाउंटिंग धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया था। हालाँकि, ताज़ा रिपोर्ट्स के अनुसार SEBI की समीक्षा में न तो फंड फ्लो के माध्यम से शेयर की कीमतें बढ़ाने का कोई सबूत मिला और न ही अडानी समूह या उसके चेयरमैन गौतम अडानी से जुड़े इनसाइडर ट्रेडिंग नियमों के उल्लंघन के प्रमाण पाए गए।

शेयर बाज़ार में चमका कोफोर्ज़, शुरुआती कारोबार में 2% से अधिक की छलांग25 Aug 25

शेयर बाज़ार में चमका कोफोर्ज़, शुरुआती कारोबार में 2% से अधिक की छलांग

वैश्विक आईटी समाधान प्रदाता कोफोर्ज़ लिमिटेड के शेयरों में आज शुरुआती कारोबार के दौरान तेज़ उछाल देखने को मिला। कंपनी के शेयर 2.28% की बढ़त के साथ खुलते ही 1,787.60 रुपये तक पहुँच गए और इसे निफ्टी मिडकैप 150 इंडेक्स के शीर्ष लाभार्थियों में जगह मिली। नोएडा स्थित इस कंपनी के शेयरों में यह बढ़त ऐसे समय आई है जब निवेशक तकनीकी क्षेत्र के प्रदर्शन पर खास नज़र बनाए हुए हैं। शेयरों में आई यह तेजी निवेशकों की नई दिलचस्पी का संकेत मानी जा रही है और मिडकैप कंपनियों के परिदृश्य में कोफोर्ज़ की मजबूत स्थिति को दर्शाती है। निफ्टी मिडकैप 150 इंडेक्स, जिसमें 150 मझोले आकार की कंपनियों का प्रदर्शन शामिल होता है, ने भी मजबूती दिखाई, जिससे कोफोर्ज़ के शेयरों को अतिरिक्त सहारा मिला।

सरकारी प्रतिबंध के बाद ड्रीम11 समेत बड़े गेमिंग ऐप्स ने रियल-मनी गेम्स किए बंद, लाखों यूज़र्स पर असर23 Aug 25

सरकारी प्रतिबंध के बाद ड्रीम11 समेत बड़े गेमिंग ऐप्स ने रियल-मनी गेम्स किए बंद, लाखों यूज़र्स पर असर

ऑनलाइन गेमिंग उद्योग को बड़ा झटका लगा है। प्रमुख फैंटेसी स्पोर्ट्स और रियल-मनी गेमिंग प्लेटफॉर्म ड्रीम11 सहित कई नामी ऐप्स ने अपने सभी पेड कॉन्टेस्ट और कैश गेम्स को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। यह कदम सरकार के उस नए निर्देश के बाद उठाया गया है जिसमें ऐसे गेम्स पर प्रतिबंध लगाया गया है। सरकार का कहना है कि रियल-मनी गेम्स से खिलाड़ियों को वित्तीय नुकसान और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने का गंभीर जोखिम है। यही कारण है कि इन गतिविधियों पर रोक लगाने का निर्णय लिया गया। इस आदेश के लागू होते ही लाखों यूज़र्स प्रभावित हुए हैं, जो नियमित रूप से इन प्लेटफॉर्म्स पर खेलते थे। उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला पूरे गेमिंग सेक्टर के बिज़नेस मॉडल को हिला सकता है। जहां एक ओर यह कदम ऑनलाइन सट्टेबाज़ी और लत की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर कंपनियों के लिए यह एक बड़ा आर्थिक झटका साबित हो सकता है।

पहले दिन से हेल्थ इंश्योरेंस कवर के लिए ज़्यादा प्रीमियम: पूर्व-विद्यमान बीमारियों में समझदारी भरा विकल्प10 Aug 25

पहले दिन से हेल्थ इंश्योरेंस कवर के लिए ज़्यादा प्रीमियम: पूर्व-विद्यमान बीमारियों में समझदारी भरा विकल्प

हेल्थ इंश्योरेंस की दुनिया में यह आम प्रचलन है कि पूर्व-विद्यमान बीमारियों (Pre-existing Conditions) के लिए कवरेज शुरू होने से पहले एक निश्चित वेटिंग पीरियड लागू किया जाता है। इस अवधि में पॉलिसीधारक को अपनी बीमारी के इलाज का खर्च खुद उठाना पड़ता है। हालांकि, ऐसे लोगों के लिए एक विकल्प मौजूद है — ज़्यादा प्रीमियम देकर पहले दिन से ही कवरेज हासिल करना। इस तरह वेटिंग पीरियड को पूरी तरह बायपास किया जा सकता है। पहली नज़र में यह महंगा सौदा लग सकता है, लेकिन लंबी अवधि में यह पॉलिसीधारक को भारी आर्थिक बोझ से बचा सकता है, खासकर तब जब इलाज का खर्चा लगातार बढ़ रहा हो। विशेषज्ञों के अनुसार, यह रणनीति उन लोगों के लिए फायदेमंद है जिन्हें पहले से किसी गंभीर या लगातार रहने वाली बीमारी का इलाज कराना पड़ रहा है। समय पर और तुरंत कवर मिलने से न केवल मानसिक सुकून मिलता है, बल्कि अप्रत्याशित चिकित्सा खर्चों से भी बचाव होता है।

"आरबीआई ने रेपो रेट को 6.5% पर बरकरार रखा, मुद्रास्फीति पर नियंत्रण बनी प्राथमिकता"06 Aug 25

"आरबीआई ने रेपो रेट को 6.5% पर बरकरार रखा, मुद्रास्फीति पर नियंत्रण बनी प्राथमिकता"

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने गुरुवार को अपनी बैठक में रेपो रेट को 6.5% पर स्थिर रखने का फैसला किया। यह लगातार छठी बैठक है जब केंद्रीय बैंक ने दरों में कोई बदलाव नहीं किया है, जो इस बात का स्पष्ट संकेत है कि RBI अब भी मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने को अपनी शीर्ष प्राथमिकता मान रहा है। गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि आर्थिक विकास को समर्थन देने के साथ-साथ मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करना जरूरी है। उन्होंने यह भी दोहराया कि जब तक महंगाई पूरी तरह नियंत्रण में नहीं आती, तब तक नीतिगत सतर्कता बनी रहेगी। इस फैसले से उम्मीद की जा रही है कि लोन दरों में कोई तात्कालिक बदलाव नहीं होगा, जिससे होम लोन और कर्ज लेने वालों को राहत मिल सकती है। साथ ही, निवेशक भी इस स्थिरता को एक सकारात्मक संकेत के रूप में देख रहे हैं, खासकर ऐसे समय में जब वैश्विक आर्थिक हालात अनिश्चित बने हुए हैं।

SBI का बड़ा लक्ष्य: अगले 5 वर्षों में बनना चाहता है दुनिया का टॉप 10 बैंक23 Jul 25

SBI का बड़ा लक्ष्य: अगले 5 वर्षों में बनना चाहता है दुनिया का टॉप 10 बैंक

देश का सबसे बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), अब वैश्विक मंच पर अपनी मौजूदगी को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की तैयारी में है। बैंक ने घोषणा की है कि उसका लक्ष्य अगले पांच वर्षों के भीतर बाजार पूंजीकरण (Market Capitalization) के आधार पर दुनिया के टॉप 10 सबसे मूल्यवान बैंकों में शामिल होना है। SBI के चेयरमैन सी.एस. सेटी ने बैंक की विकास यात्रा और भविष्य की रणनीति को साझा करते हुए इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि डिजिटल नवाचार, खुदरा ऋण वृद्धि और वैश्विक निवेशकों का विश्वास – इन सभी कारकों के दम पर SBI इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए पूरी तरह तैयार है। यह लक्ष्य न केवल बैंक की साख को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाएगा, बल्कि भारत की आर्थिक शक्ति का भी प्रतीक बनेगा।

"बजाज फाइनेंस में प्रबंधन बदलाव से शेयरों में हलचल, उत्तराधिकार को लेकर बाजार में चिंता"22 Jul 25

"बजाज फाइनेंस में प्रबंधन बदलाव से शेयरों में हलचल, उत्तराधिकार को लेकर बाजार में चिंता"

बजाज फाइनेंस लिमिटेड के प्रबंध निदेशक (MD) राजीव जैन के इस्तीफे की घोषणा के बाद कंपनी के शेयरों में तेज उतार-चढ़ाव देखा गया। जैन, जो लंबे समय से कंपनी के नेतृत्व में रहे हैं, के हटने की खबर ने निवेशकों और विश्लेषकों के बीच उत्तराधिकार योजना को लेकर चिंता पैदा कर दी है। हालांकि कंपनी ने इस बदलाव को पूर्व नियोजित नेतृत्व संक्रमण का हिस्सा बताया है, लेकिन बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे अनुभवी नेतृत्व के जाने से कंपनी की दीर्घकालिक रणनीति पर असर पड़ सकता है। इस घटनाक्रम के बाद निवेशक यह देखने को उत्सुक हैं कि कंपनी अगले नेतृत्व के लिए क्या स्पष्ट दिशा तय करती है, ताकि बाजार को भरोसा मिल सके और स्थिरता बनी रहे।

"इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में चीन को मिल सकती है राहत: भारत सरकार विचार में, टेक ट्रांसफर और साझेदारी होगी शर्त"21 Jul 25

"इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में चीन को मिल सकती है राहत: भारत सरकार विचार में, टेक ट्रांसफर और साझेदारी होगी शर्त"

भारत सरकार विदेशी निवेश नीति में एक अहम बदलाव पर विचार कर रही है, जो चीन के साथ आर्थिक रिश्तों में नया मोड़ ला सकता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में चीनी कंपनियों के लिए निवेश प्रतिबंधों को आंशिक रूप से नरम करने पर विचार कर रही है। हालांकि, यह संभावित छूट बिना शर्त नहीं होगी। सूत्रों का कहना है कि सरकार इस छूट के साथ कुछ सख्त शर्तें जोड़ेगी, जैसे कि भारतीय कंपनियों के साथ संयुक्त उपक्रम (जॉइंट वेंचर) की अनिवार्यता और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (टेक ट्रांसफर) को प्राथमिकता दी जाएगी। इस कदम का उद्देश्य एक तरफ घरेलू विनिर्माण को मजबूत करना है, वहीं दूसरी ओर रणनीतिक क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना भी है। यदि यह नीति लागू होती है, तो यह चीन के साथ भारत के आर्थिक रिश्तों में एक व्यावहारिक लेकिन सतर्क रुख को दर्शाएगी।

मार्केट को Q1 नतीजों का इंतजार: इंफोसिस, पेटीएम, नेस्ले इंडिया समेत 95+ कंपनियां अगले हफ्ते पेश करेंगी तिमाही रिपोर्ट20 Jul 25

मार्केट को Q1 नतीजों का इंतजार: इंफोसिस, पेटीएम, नेस्ले इंडिया समेत 95+ कंपनियां अगले हफ्ते पेश करेंगी तिमाही रिपोर्ट

भारतीय शेयर बाजार अगले हफ्ते एक अहम मोड़ पर पहुंचने वाला है, क्योंकि वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही (Q1 FY25) के नतीजों का सीज़न रफ्तार पकड़ रहा है। इंफोसिस, पेटीएम, नेस्ले इंडिया, हिंदुस्तान यूनिलीवर, ICICI लोंबार्ड और अल्ट्राटेक सीमेंट जैसी प्रमुख कंपनियों समेत 95 से अधिक सूचीबद्ध फर्म्स अगले सप्ताह अपने वित्तीय नतीजे जारी करने जा रही हैं। यह सप्ताह निवेशकों, विश्लेषकों और बाजार सहभागियों के लिए खासा महत्वपूर्ण रहेगा क्योंकि इन नतीजों से कॉरपोरेट भारत की वित्तीय सेहत और सेक्टर-वार प्रदर्शन का शुरुआती संकेत मिलेगा। रिपोर्ट्स से यह भी तय होगा कि IT, FMCG, BFSI और मैन्युफैक्चरिंग जैसे सेक्टर्स ने नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत कैसी की है।

क्या ब्याज दरों में कटौती से पहले Debt Mutual Funds बन सकते हैं एक समझदारी भरा दांव?20 Jul 25

क्या ब्याज दरों में कटौती से पहले Debt Mutual Funds बन सकते हैं एक समझदारी भरा दांव?

जैसे-जैसे यह अटकलें तेज़ होती जा रही हैं कि आने वाले महीनों में केंद्रीय बैंक — खासतौर पर भारतीय रिजर्व बैंक — ब्याज दरों में कटौती का सिलसिला शुरू कर सकते हैं, निवेशक अब तेजी से डेब्ट म्यूचुअल फंड्स की ओर रुख कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ब्याज दरों में गिरावट से डेब्ट फंड्स में कैपिटल गेन की संभावनाएं बढ़ जाती हैं, खासकर लॉन्ग ड्यूरेशन फंड्स में। जब ब्याज दरें नीचे आती हैं, तो मौजूदा बॉन्ड्स की वैल्यू ऊपर जाती है, जिससे फंड के NAV में बढ़त होती है। हालांकि, वित्तीय सलाहकार चेतावनी देते हैं कि केवल अनुमान के आधार पर निवेश करना जोखिमभरा हो सकता है। बाजार में समय तय करना आसान नहीं होता, और ब्याज दरों में बदलाव की गति या दिशा उम्मीद के विपरीत भी जा सकती है। विशेषज्ञ यह भी सुझाव देते हैं कि अगर आप आने वाले 2-3 वर्षों के लिए निवेश कर रहे हैं और थोड़ा उतार-चढ़ाव झेल सकते हैं, तो गिल्ट फंड्स, डायनेमिक बॉन्ड फंड्स या मीडियम टर्म डेट फंड्स आपके पोर्टफोलियो में अच्छे विकल्प हो सकते हैं। संक्षेप में कहा जाए, तो अगर आप ब्याज दरों में संभावित कटौती को भुनाने की सोच रहे हैं, तो डेब्ट म्यूचुअल फंड्स एक स्मार्ट मूव हो सकते हैं — बशर्ते आपने जोखिम और समयसीमा का सही मूल्यांकन किया हो।

Corporate news