23 फरवरी 2025 (UNA) : छत्रपति शिवाजी महाराज भारतीय इतिहास के उन महान वीरों में से एक हैं, जिन्होंने न केवल मराठा साम्राज्य की स्थापना की, बल्कि अपने अद्वितीय शौर्य, साहस और रणनीतिक कौशल से मुगलों और अन्य आक्रमणकारियों का डटकर सामना किया। उनकी जीवनी प्रेरणादायक घटनाओं से भरी हुई है, जिन्होंने न केवल मराठा जनमानस को बल्कि संपूर्ण भारतीय समाज को प्रबल राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत किया। यह कहानी शिवाजी महाराज के जीवन के कुछ प्रमुख और प्रेरणादायक प्रसंगों पर आधारित है। प्रारंभिक जीवन और संघर्ष शिवाजी का जन्म 19 फरवरी 1630 को महाराष्ट्र के शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। उनके पिता शाहजी भोंसले बीजापुर सल्तनत के एक सामंत थे और माता जीजाबाई धर्मपरायण और साहसी महिला थीं। शिवाजी के प्रारंभिक जीवन पर उनकी माता का गहरा प्रभाव था। जीजाबाई ने उन्हें रामायण, महाभारत और भारतीय संस्कृति के महान नायकों की कहानियाँ सुनाकर बचपन से ही उनमें साहस, वीरता और न्याय की भावना का संचार किया। शिवाजी का जीवन सामान्य राजकुमारों जैसा नहीं था; बचपन से ही उन्हें संघर्षों का सामना करना पड़ा। जब शिवाजी किशोरावस्था में पहुँचे, उन्होंने महसूस किया कि भारत में मुगलों का आतंक बढ़ता जा रहा है और भारतीय संस्कृति तथा जनता पर अत्याचार हो रहा है। शिवाजी का हृदय इस अत्याचार से व्यथित हो उठा। उन्होंने अपनी माँ से प्रेरणा लेकर यह प्रण लिया कि वह इस अत्याचार का अंत करेंगे और एक स्वतंत्र मराठा साम्राज्य की स्थापना करेंगे। स्वराज्य की स्थापना का संकल्प शिवाजी ने अपने कुछ विश्वासपात्र साथियों के साथ मिलकर स्वराज्य की स्थापना का संकल्प लिया। शिवाजी का मानना था कि भारत को स्वराज्य यानी आत्मनिर्भर और स्वतंत्र शासन की आवश्यकता है। वह चाहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति न्याय, स्वतंत्रता और सम्मान के साथ जी सके। उनके इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने छापामार युद्ध नीति का सहारा लिया। छापामार युद्ध में दुश्मन पर अचानक हमला करके उसे घेर लिया जाता था और फिर तेजी से पीछे हट जाते थे। ताना जी मालुसरे का बलिदान शिवाजी महाराज की सेना में ताना जी मालुसरे का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। ताना जी शिवाजी महाराज के एक अनन्य सहयोगी और महान योद्धा थे। सिंहगढ़ का किला, जिसे पहले कोंडाणा के नाम से जाना जाता था, बीजापुर के सुल्तान के अधिकार में था। यह किला सामरिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि इससे पुणे और उसके आस-पास के क्षेत्रों पर नियंत्रण रखा जा सकता था। शिवाजी महाराज ने इस किले को वापस लेने का निर्णय लिया, और इस कार्य के लिए उन्होंने ताना जी को नियुक्त किया। ताना जी ने अपनी सेना के साथ दुश्मन के किले पर अचानक हमला किया। किला दुर्गम था और उसे जीतना लगभग असंभव था, लेकिन ताना जी ने अपनी जान की परवाह किए बिना किले की चढ़ाई की और बीजापुर की सेना को पराजित कर किले पर विजय प्राप्त की। इस युद्ध में ताना जी ने वीरगति प्राप्त की। जब शिवाजी को यह समाचार मिला, तो उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा, "गढ़ आला, पण सिंह गेला" (किला तो जीत लिया गया, लेकिन मेरा शेर चला गया)। इस प्रकार ताना जी मालुसरे का बलिदान मराठा इतिहास में अमर हो गया। अफजल खान का वध शिवाजी महाराज के जीवन का एक और महत्वपूर्ण प्रसंग अफजल खान के वध से जुड़ा हुआ है। अफजल खान बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह का सेनापति था और उसने शिवाजी को पराजित करने की शपथ ली थी। वह अपनी विशाल सेना के साथ शिवाजी को पकड़ने के लिए निकल पड़ा। अफजल खान चालाक और क्रूर था, और उसने शिवाजी को मिलने के लिए बुलाया। शिवाजी समझ गए थे कि यह एक षड्यंत्र था, लेकिन उन्होंने चालाकी से इसका सामना करने का निर्णय लिया। शिवाजी ने अपने साथियों से कहा कि अगर वह वापस नहीं लौटे, तो वे उनकी योजना के अनुसार काम करें। उन्होंने अपने शरीर पर एक विशेष बख्तर पहन लिया और हाथ में बघनख (नुकीले पंजे जैसे हथियार) छिपा लिए। जब शिवाजी और अफजल खान का सामना हुआ, तो अफजल खान ने शिवाजी को गले लगाने के बहाने धोखे से मारने की कोशिश की। लेकिन शिवाजी ने बघनख से अफजल खान का पेट फाड़ दिया और उसे मार गिराया। इस प्रकार शिवाजी ने अपनी कुशल रणनीति से एक बड़े षड्यंत्र को नाकाम कर दिया और मराठा साम्राज्य को बचाया। रायगढ़ का राज्याभिषेक शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसने मराठा साम्राज्य की स्थापना की आधिकारिक मुहर लगाई। 6 जून 1674 को रायगढ़ किले में शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक संपन्न हुआ। यह एक महत्वपूर्ण क्षण था, क्योंकि शिवाजी ने अपने साम्राज्य की स्थापना के लिए वर्षों तक संघर्ष किया था। उन्होंने स्वराज्य की संकल्पना को साकार किया और मराठा साम्राज्य की नींव रखी। राज्याभिषेक के बाद शिवाजी महाराज को छत्रपति की उपाधि दी गई, जिसका अर्थ होता है "सम्राट।" इस उपाधि ने उन्हें मराठा साम्राज्य का सर्वोच्च शासक बना दिया। शिवाजी ने अपने शासनकाल में न्याय, धर्म और समाज के कल्याण पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने एक मजबूत प्रशासनिक ढांचे की स्थापना की और किसानों, व्यापारियों और सैनिकों के लिए विशेष नीतियाँ बनाई। शिवाजी महाराज की युद्ध नीति उनके समय के लिए अत्यधिक उन्नत और अनूठी थी। उन्होंने छापामार युद्ध (गुरिल्ला युद्ध) को अपनाया, जो मुगलों और अन्य शासकों के पारंपरिक युद्ध तरीकों से पूरी तरह भिन्न था। उनके द्वारा अपनाई गई छापामार रणनीति में दुश्मन पर अचानक हमले करना, दुर्गम पहाड़ियों और घने जंगलों का लाभ उठाकर छिपना, और फिर दुश्मन को पूरी तरह से चौंका देना शामिल था। यह रणनीति शिवाजी को बहुत प्रभावी साबित हुई, क्योंकि मुगलों की विशाल सेना भी इस प्रकार के युद्ध में असमर्थ थी। इसके अलावा, शिवाजी महाराज ने दुर्गों (किलों) की एक मजबूत शृंखला बनाई, जो मराठा साम्राज्य के रक्षा तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा थे। महाराष्ट्र की पहाड़ियों में स्थित ये दुर्ग न केवल दुश्मन के आक्रमणों से सुरक्षा प्रदान करते थे, बल्कि मराठा सेना को एक रणनीतिक बढ़त भी देते थे। दक्षिण भारत में विजय शिवाजी महाराज ने न केवल पश्चिम भारत में अपनी ताकत को बढ़ाया, बल्कि दक्षिण भारत में भी अपनी शक्ति का विस्तार किया। उन्होंने कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के कई हिस्सों में विजय प्राप्त की - UNA

छत्रपति शिवाजी महाराज: साहस, रणनीति और स्वराज्य की अद्वितीय गाथा
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डॉ. भीम राव अंबेडकर, जिन्हें स्नेहपूर्वक बाबासाहेब के नाम से जाना जाता है, 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू नामक छोटे से नगर में जन्मे थे। वे महार जाति के एक ऐसे परिवार में जन्मे थे, जिसे उस समय समाज में भयंकर भेदभाव का सामना करना पड़ता था और जिसे 'अछूत' माना जाता था। बावजूद इसके, अंबेडकर के पिता, सूबेदार रामजी, ने यह सुनिश्चित किया कि उनके बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त करें। उन्होंने सैन्य परिवारों को दी जाने वाली सुविधाओं का पूरा लाभ उठाया और अपने बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरित किया। यह प्रेरणा उन्हें न केवल व्यक्तिगत संघर्षों से जूझने की ताकत देती थी, बल्कि भारतीय समाज में समानता, न्याय और अधिकारों की स्थापना के लिए उनका मार्गदर्शन भी करती थी।