पटना (UNA) : बिहार में मतदाता सूची के विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण की प्रक्रिया अब अंतिम चरण में पहुँच गई है। इस अभियान को चुनाव आयोग “शुद्धिकरण” प्रक्रिया बता रहा है, जिसका उद्देश्य मृत मतदाताओं, डुप्लीकेट नामों और स्थायी रूप से स्थानांतरित हो चुके लोगों के नाम सूची से हटाना है। इस दौरान बड़ी संख्या में नाम काटे गए हैं। जहाँ अधिकारियों का कहना है कि इससे मतदाता सूची और अधिक सटीक होगी, वहीं आलोचकों को आशंका है कि कहीं इस प्रक्रिया में पात्र मतदाता भी सूची से बाहर न हो जाएँ।
दिलचस्प बात यह है कि बड़े पैमाने पर नाम काटे जाने के बावजूद नागरिकों की ओर से औपचारिक आपत्तियाँ बहुत कम आई हैं। कुछ अधिकारी इसे जनता की स्वीकृति मानते हैं, लेकिन कई विशेषज्ञों का कहना है कि इसके पीछे जागरूकता की कमी, मतदाताओं की उदासीनता या आपत्ति दर्ज कराने की जटिल प्रक्रिया हो सकती है।
मामले पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी ध्यान दिया और चुनाव आयोग को यह याद दिलाया कि मतदाता सूची को शुद्ध रखना ज़रूरी है, लेकिन इस प्रक्रिया में किसी भी पात्र मतदाता को वोट देने के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। आयोग का कहना है कि इस बार लोगों की सुविधा के लिए ऑनलाइन पोर्टल और विशेष सत्यापन शिविरों का विस्तार किया गया है, ताकि हर व्यक्ति अपने नाम की पुष्टि कर सके और आपत्ति दर्ज करा सके।
अब जबकि आपत्ति दर्ज कराने की समय-सीमा लगभग पूरी हो चुकी है, जिम्मेदारी बूथ स्तर अधिकारियों और स्थानीय चुनाव कर्मियों पर आ गई है। उन्हीं की सतर्कता और सावधानी से यह तय होगा कि अंतिम मतदाता सूची कितनी सटीक और समावेशी बनती है। यह सूची आने वाले विधानसभा चुनावों की बुनियाद होगी, इसलिए इस बार का पुनरीक्षण हाल के वर्षों में सबसे अधिक चर्चित माना जा रहा है। - UNA