पटना, बिहार (UNA) : बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने ग़ैर-क़ानूनी घुसपैठ को अपना बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया है, खासतौर पर सीमांचल क्षेत्र को केंद्र में रखकर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह स्वयं चुनावी सभाओं में इस मुद्दे को उठाते हुए विपक्षी दलों पर तुष्टिकरण की राजनीति करने और राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ करने का आरोप लगा रहे हैं।
हालिया रैलियों में दोनों नेताओं ने दावा किया कि विपक्षी दल वोटबैंक मज़बूत करने के लिए घुसपैठियों को मतदाता सूची में शामिल करा रहे हैं। उनके अनुसार, इससे न सिर्फ़ चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता प्रभावित हो रही है बल्कि असली नागरिकों को मिलने वाले कल्याणकारी योजनाओं के लाभ भी अवैध प्रवासियों की ओर मुड़ जाते हैं।
गृह मंत्री अमित शाह ने अपने संबोधन में चेतावनी दी कि घुसपैठ राज्य की जनसांख्यिकी संतुलन बदल सकती है और गंभीर सुरक्षा जोखिम खड़ा करती है। उन्होंने कहा कि इस तरह की गतिविधियाँ असली लाभार्थियों को योजनाओं से वंचित करती हैं और देशविरोधी ताक़तों को मज़बूत करती हैं।
भाजपा का सीमांचल पर यह ज़ोर रणनीतिक दृष्टि से अहम माना जा रहा है। किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार जिलों वाला यह इलाक़ा बांग्लादेश और नेपाल की खुली सीमा से लगा है और यहाँ मुस्लिम आबादी भी काफ़ी अधिक है। भाजपा कई दशकों से इस क्षेत्र में सीमा-पार पलायन और अवैध प्रवास को केंद्रीय मुद्दा बनाती रही है, ताकि अपने समर्थक वर्ग को मज़बूत किया जा सके।
वहीं विपक्षी दल—राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस—ने भाजपा के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि सत्तारूढ़ पार्टी जानबूझकर ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है ताकि बेरोज़गारी, महंगाई, स्वास्थ्य सेवाएँ और बुनियादी ढाँचे जैसे असली मुद्दों से ध्यान हटाया जा सके। विपक्ष का आरोप है कि “घुसपैठिया” वाला मुद्दा भाजपा बार-बार चुनावों में दोहराती है, जिससे जनता की रोज़मर्रा की समस्याओं पर बहस पीछे छूट जाती है।
इन तीखे आरोप-प्रत्यारोपों के बीच यह साफ़ है कि आने वाले चुनाव में घुसपैठ का मुद्दा सबसे विवादास्पद और ध्रुवीकरण करने वाले विषयों में से एक रहेगा। एक ओर भाजपा सुरक्षा और राष्ट्रीय पहचान पर ज़ोर देगी, जबकि विपक्ष विकास और रोज़गार जैसे बुनियादी सवालों को आगे रखेगा। - UNA