Chronic दर्द बढ़ा सकता है डिप्रेशन का खतरा, नई स्टडी से हुआ खुलासा17 Apr 25

Chronic दर्द बढ़ा सकता है डिप्रेशन का खतरा, नई स्टडी से हुआ खुलासा

17 अप्रैल 2025 (UNA) : जोड़ों का दर्द, कांपते हाथ, माइग्रेन, और वह गहरी थकान जो कभी नहीं जाती। कुछ लोगों के लिए, ये सिर्फ एक लंबी और थकी हुई दिन की निशानियाँ नहीं होतीं, बल्कि शरीर की शांत अपील होती हैं मदद के लिए। पुराना दर्द, जो अक्सर दूसरों को दिखाई नहीं देता, धीरे-धीरे और स्थिर रूप से आपके जीवन में समा सकता है, आपके शरीर के साथ-साथ आपकी आत्मा को भी सुस्त कर देता है। समय के साथ, यह सिर्फ शारीरिक असुविधा से कहीं ज्यादा बन जाता है। यह आपके मूड, ऊर्जा, और आत्मसम्मान पर भारी पड़ने लगता है।

जब दर्द तीन महीने से अधिक समय तक बना रहता है, तो इसे पुराना दर्द कहा जाता है। हाल ही में येल विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, यह सिर्फ एक लक्षण नहीं है, बल्कि यह एक अलग स्थिति है जो लगभग 30 प्रतिशत लोगों को दुनिया भर में प्रभावित करती है। इसका असर सिर्फ शरीर तक सीमित नहीं है।

अध्यानुसार, पुराना दर्द आपकी नींद को खराब कर सकता है, साधारण कार्यों को भी थकाऊ बना सकता है, और धीरे-धीरे आपके जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा, यह आपकी मानसिक स्थिति को भी नीचे खींच सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि पुराना दर्द जीन, सामाजिक तनाव और पर्यावरणीय कारकों से जुड़कर अवसाद का कारण बन सकता है।

यह स्पष्ट है कि पुराना दर्द सिर्फ शारीरिक परेशानी नहीं है, बल्कि यह मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि इसका इलाज शारीरिक के साथ-साथ मानसिक पहलुओं पर भी ध्यान देते हुए किया जाए। - UNA

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जानी-मानी न्यूट्रिशनिस्ट और लेखक रुजुता दिवेकर एक बार फिर से सेहत के नाम पर चलने वाले जटिल ट्रेंड्स से ध्यान हटाकर भारतीय रसोई की पारंपरिक समझ की ओर सबका ध्यान खींच रही हैं। हाल ही में अपने नए रेसिपी बुक की चर्चा के दौरान उन्होंने एक बेहद सरल लेकिन असरदार विचार साझा किया: "जो खाना आप अपनी मातृभाषा में पहचान सकते हैं, वही आपके शरीर के लिए सबसे उपयुक्त है।" रुजुता का मानना है कि हमारी सेहत की जड़ें हमारी संस्कृति, भाषा और खानपान में छिपी होती हैं। पश्चिमी डाइट्स या महंगे सुपरफूड्स की बजाय अगर हम अपनी दादी-नानी के बताएं हुए खाने की ओर लौटें — जैसे दाल-चावल, पराठा, या मूंगफली — तो हम न केवल स्वस्थ रह सकते हैं, बल्कि मानसिक रूप से भी बेहतर महसूस करेंगे। उनका यह नजरिया आज के समय में और भी प्रासंगिक है, जब लोग इंस्टाग्राम ट्रेंड्स और "डिटॉक्स डाइट्स" के पीछे भागते हुए अपनी जड़ों को भूलते जा रहे हैं।