इम्फ़ाल (UNA) : हिंसा से जूझ रहे मणिपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा ने सतर्क आशा की एक किरण जगाई है। राज्यभर में विभिन्न समुदायों ने इसे अपने संकट की लंबे समय से प्रतीक्षित स्वीकृति के रूप में देखा है। महीनों से चले आ रहे जातीय संघर्ष में सैकड़ों लोगों की मौत हुई है, हज़ारों विस्थापित हुए हैं और समुदायों के बीच गहरे विभाजन उभर आए हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री की ज़मीनी मौजूदगी मेल-मिलाप की दिशा में एक प्रतीकात्मक क़दम मानी जा रही है।
राहत शिविरों में रह रहे कई लोगों के लिए यह यात्रा उस अनिश्चितता के बीच सुने जाने का एहसास लेकर आई। विश्लेषकों का कहना है कि यह केंद्र सरकार की ओर से शांति और स्थिरता बहाल करने के लिए केंद्रित प्रयासों की शुरुआत साबित हो सकती है।
हालाँकि, स्थानीय लोगों और नेताओं का मानना है कि प्रतीकात्मकता को अब ठोस कार्यवाही में बदलना होगा। सशस्त्र समूहों के तत्काल निरस्त्रीकरण, विस्थापित परिवारों की सुरक्षित पुनर्वास प्रक्रिया और संघर्ष की जड़ों को संबोधित करने वाले समावेशी संवाद की माँगें लगातार तेज़ हो रही हैं। इन पर ठोस कदम उठाए बिना प्रारंभिक आशावाद जल्द ही फीका पड़ सकता है।
आगे की राह बेहद कठिन है — सुरक्षा सुनिश्चित करना, न्याय दिलाना और गहराई से बँटे समाज में विश्वास का पुल बनाना। इसके बावजूद, यह यात्रा एक महत्वपूर्ण अवसर लेकर आई है कि मणिपुर की कहानी टकराव से निकलकर उपचार की ओर बढ़े। आने वाले हफ़्ते यह तय करेंगे कि यह पल सचमुच एक निर्णायक मोड़ बनता है या फिर खोया हुआ अवसर साबित होता है। - UNA