नई दिल्ली (UNA) : - वैश्विक व्यापार चिंताओं के विपरीत एक साहसिक और प्रति-सहज ज्ञान युक्त (counter-intuitive) राय देते हुए, जेफरीज (Jefferies) के इक्विटी रणनीति के प्रभावशाली ग्लोबल हेड क्रिस्टोफर वुड ने घोषणा की है कि एक संभावित डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा भारतीय सामानों पर लगाया जाने वाला 50% टैरिफ (आयात शुल्क) घबराने और बेचने का कारण नहीं, बल्कि भारतीय शेयरों के लिए एक आकर्षक खरीदारी का अवसर माना जाना चाहिए। उनका यह बयान, जो संभवतः उनके व्यापक रूप से पढ़े जाने वाले साप्ताहिक नोट "GREED & fear" में दिया गया है, भारत के निर्यात-संचालित क्षेत्रों के लिए एक बड़े खतरे को देश की घरेलू अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक उत्प्रेरक के रूप में फिर से परिभाषित करता है।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने अभियान के दौरान, भारी टैरिफ लगाने का विचार रखा है, जिसमें एक सार्वभौमिक आधारभूत टैरिफ और उन देशों पर "पारस्परिक कर" शामिल है जिन्हें वह अनुचित व्यापार प्रथाओं वाला मानते हैं। इस तरह के संरक्षणवादी उपायों की संभावना ने वैश्विक बाजारों पर अनिश्चितता का साया डाल दिया है, खासकर भारत जैसे निर्यात-प्रधान अर्थव्यवस्थाओं के लिए।
हालांकि, वुड का विश्लेषण बताता है कि ऐसा कदम, भले ही अल्पावधि में विघटनकारी हो, लेकिन यह अंततः भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता की यात्रा को तेज करेगा - जो वर्तमान सरकार के "मेक इन इंडिया" और "आत्मनिर्भर भारत" पहलों का एक मुख्य उद्देश्य है।
तर्क का मूल यह है कि एक महत्वपूर्ण टैरिफ झटका एक शक्तिशाली आंतरिक बदलाव के लिए मजबूर करेगा। भारत की विकास गाथा को पटरी से उतारने के बजाय, यह भारतीय उद्योगों को उपमहाद्वीप के विशाल और बड़े पैमाने पर अप्रयुक्त घरेलू बाजार पर अधिक तीव्रता से ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर करेगा।
वुड की सोच से परिचित एक रणनीतिकार ने बताया, "एक महत्वपूर्ण टैरिफ झटका भारत के घरेलू-केंद्रित आर्थिक मॉडल के लिए अंतिम तनाव परीक्षण होगा।" "टैरिफ समाचार के आधार पर बाजार में किसी भी घुटने-के-झटका (knee-jerk) बेचने से भारत की आंतरिक खपत की मूलभूत ताकत को अनदेखा किया जाएगा। दीर्घकालिक निवेशकों के लिए, यह एक बेहतरीन प्रवेश बिंदु बनाता है।"
यह दृष्टिकोण पारंपरिक सोच के बिल्कुल विपरीत है। 50% का टैरिफ निस्संदेह भारत के प्रमुख निर्यात क्षेत्रों, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी, फार्मास्यूटिकल्स, कपड़ा, ऑटोमोटिव पार्ट्स, और रत्न और आभूषण शामिल हैं, जिन पर संयुक्त राज्य अमेरिका एक प्राथमिक बाजार है, को कड़ी चोट पहुंचाएगा। ऐसी नीति पर तत्काल बाजार की प्रतिक्रिया नकारात्मक होने की संभावना है, जो घटते निर्यात राजस्व और बाधित आपूर्ति श्रृंखलाओं के डर से प्रेरित होगी।
हालांकि, वुड का तर्क इस विश्वास में निहित है कि भारत की अर्थव्यवस्था का असली इंजन उसके 1.4 अरब लोग हैं। उनका मानना है कि दीर्घकालिक संरचनात्मक चालक - युवा जनसांख्यिकी, बढ़ता मध्य वर्ग, तेजी से शहरीकरण और बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे पर खर्च - देश की निर्यात कमजोरियों की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं। इस दृष्टिकोण में, निर्यात पर निर्भरता में एक मजबूर कमी लंबे समय में एक मजबूत, अधिक लचीली घरेलू अर्थव्यवस्था को जन्म दे सकती है।
बाजार विश्लेषकों का सुझाव है कि यह राय भारत के लचीलेपन पर एक क्लासिक विपरीत दांव (contrarian bet) है। यह निवेशकों को तत्काल सुर्ख़ियों के जोखिम से परे देखने और चल रहे अंतर्निहित आर्थिक परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करने की चुनौती देता है। अगर एक व्यापारिक झटका भारतीय बाजारों को सस्ता बनाता है, तो वुड की राय का तात्पर्य है कि यह छूट पर बहु-दशक की विकास गाथा में निवेश करने का एक सुनहरा अवसर होगा।
जैसे-जैसे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव नजदीक आ रहा है, वैश्विक निवेशक किसी भी नीतिगत बदलाव पर बारीकी से नजर रखेंगे जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रभावित कर सकता है। लेकिन क्रिस्टोफर वुड की सलाह का पालन करने वालों के लिए, व्यापार युद्ध के नगाड़ों की आवाज भारत में उनके अगले बड़े निवेश के लिए शुरुआती संकेत हो सकती है। - UNA