कोलकाता (UNA) : – भारत के पूर्व क्रिकेटर और मौजूदा राजनीतिज्ञ मनोज तिवारी ने टीम इंडिया की चयन नीति पर बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। तिवारी ने दावा किया है कि भारतीय टीम मैनेजमेंट ने जिस ब्रॉन्को फिटनेस टेस्ट को लागू किया, उसका असली मकसद रोहित शर्मा को वनडे टीम से बाहर करना था।
एक हालिया इंटरव्यू में तिवारी ने आरोप लगाया कि यह नया सहनशक्ति टेस्ट खास तौर पर रोहित शर्मा को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था, क्योंकि उनकी फिटनेस को लेकर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं। तिवारी के शब्दों में, “ब्रॉन्को टेस्ट लाने का उद्देश्य रोहित शर्मा को टीम से बाहर रखना था। अगर वह अपनी फिटनेस का स्तर नहीं बढ़ाते, तो उनके लिए वनडे टीम में बने रहना मुश्किल होगा।”
ब्रॉन्को टेस्ट, पहले इस्तेमाल होने वाले यो-यो टेस्ट से भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण माना जाता है। इसमें खिलाड़ियों को तय समयसीमा में 20, 40 और 60 मीटर की शटल रन लगातार पूरी करनी होती है। यही टेस्ट अब टीम चयन में अहम पैमाना बनता जा रहा है।
तिवारी की इस टिप्पणी के बाद यह बहस तेज हो गई है कि क्या फिटनेस मानदंड सभी खिलाड़ियों पर निष्पक्ष रूप से लागू किए जा रहे हैं या फिर उनका इस्तेमाल चुनिंदा खिलाड़ियों को टारगेट करने के लिए हो रहा है। बीसीसीआई हमेशा से कहती आई है कि उच्चतम स्तर की फिटनेस से कोई समझौता नहीं होगा, लेकिन किसी सीनियर खिलाड़ी—खासकर कप्तान रोहित शर्मा—के खिलाफ रणनीति के तौर पर ऐसा कदम उठाए जाने का संकेत गंभीर सवाल खड़े करता है।
रोहित शर्मा की फिटनेस लंबे समय से चर्चा में रही है, हालांकि 2023 वनडे विश्व कप में वह काफी फिट और चुस्त नजर आए थे। उस टूर्नामेंट में उन्होंने कप्तानी करते हुए भारत को फाइनल तक पहुँचाया और खुद भी लगातार रन बनाए। वर्तमान में वह टीम इंडिया की कप्तानी टी20 और टेस्ट दोनों प्रारूपों में कर रहे हैं।
फिलहाल न तो बीसीसीआई, न टीम मैनेजमेंट और न ही रोहित शर्मा की ओर से इन आरोपों पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया दी गई है। मगर तिवारी का यह बयान उस बहस को और तीखा बना देता है कि आखिर चयन में प्राथमिकता प्रदर्शन को दी जानी चाहिए या फिर कठोर फिटनेस मानकों को। - UNA