धाराशिव, महाराष्ट्र (UNA) : पाँच दशकों से भी अधिक समय बाद मराठवाड़ा की धरती पर बाघ की दहाड़ गूँजी है। यह ऐतिहासिक पल तब आया जब एक युवा नर बाघ, जिसे अब स्थानीय लोग “रामलिंग” कहकर पुकार रहे हैं, लगभग 450 किलोमीटर लंबी कठिन यात्रा तय करके विदर्भ के टिपेश्वर वन्यजीव अभयारण्य से निकलकर येडशी रामलिंग घाट वन्यजीव अभयारण्य में अपना नया ठिकाना बना लिया।
रामलिंग की यह अद्भुत यात्रा खेतों, जंगलों और यहाँ तक कि आबादी वाले इलाकों से होकर गुज़री। पिछले साल के अंत में पहली बार वह येडशी के भीतर कैमरा ट्रैप में कैद हुआ। तस्वीरों की तुलना करने के बाद वन विभाग ने पुष्टि की कि यह वही बाघ है जिसे पहले टिपेश्वर में देखा गया था। तब से उस पर लगातार नज़र रखी जा रही है।
शुरुआत में रामलिंग ने पास के गाँवों में मवेशियों का शिकार किया, जिससे ग्रामीणों में डर और चिंता बढ़ी। लेकिन धीरे-धीरे उसने अपने शिकार की आदत बदली और अब वह जंगली सूअर, नीलगाय, सांभर और चिंकारा जैसे जंगली जानवरों का शिकार कर रहा है। यह इस बात का संकेत है कि बाघ धीरे-धीरे अपने नए इलाके में खुद को ढाल रहा है।
येडशी अभयारण्य आकार में छोटा है—सिर्फ 22 वर्ग किलोमीटर का—लेकिन यहाँ रामलिंग को भोजन और रहने के लिए पर्याप्त जगह मिल रही है। वन विभाग आसपास के गाँवों में जागरूकता अभियान भी चला रहा है, ताकि इंसान और बाघ आपसी टकराव से बचकर शांतिपूर्वक रह सकें।
संरक्षण के नज़रिए से देखें तो रामलिंग का यहाँ पहुँचना ऐतिहासिक है। यह साबित करता है कि जंगल भले सिकुड़ रहे हों, लेकिन महाराष्ट्र के वन्यजीव अभयारण्यों के बीच प्राकृतिक गलियारे अब भी मौजूद हैं। सबसे बड़ी बात, यह उम्मीद जगाता है कि यदि देखभाल और सुरक्षा दी जाए तो खोए हुए आवास भी अपने सबसे शाही निवासी का स्वागत कर सकते हैं। - UNA

पचास साल बाद मराठवाड़ा में गूंजा बाघ का गर्जन, 450 किलोमीटर पैदल चलकर बनाया नया ठिकाना
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मराठवाड़ा की धरती पर पचास साल बाद फिर से बाघ का आगमन हुआ है। विदर्भ के टिपेश्वर वन्यजीव अभयारण्य से एक युवा नर बाघ लगभग 450 किलोमीटर लंबी कठिन यात्रा तय कर धर्माशिव ज़िले के येडशी रामलिंग घाट वन्यजीव अभयारण्य तक पहुँचा है। स्थानीय लोग अब इस बाघ को प्यार से “रामलिंग” नाम से पुकार रहे हैं। यह सफर न केवल बाघ की साहसिक प्रवृत्ति को दर्शाता है, बल्कि यह इस क्षेत्र के पर्यावरणीय महत्व और जैव विविधता की समृद्धि का भी प्रतीक है। आधी सदी से वीरान पड़ी इस धरती पर बाघ का लौटना यहाँ के जंगलों और वन्यजीव संरक्षण प्रयासों के लिए एक नई उम्मीद की किरण लेकर आया है।


