वोडाफोन-आइडिया ने एजीआर बकाया गणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया09 Sep 25

वोडाफोन-आइडिया ने एजीआर बकाया गणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया

नई दिल्ली (UNA) – संघर्षरत दूरसंचार कंपनी वोडाफोन आइडिया ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। कंपनी ने दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा वित्त वर्ष 2018–19 के लिए समायोजित सकल राजस्व (AGR) बकाया की संशोधित गणना को चुनौती दी है। विभाग ने इस अवधि के लिए लगभग ₹2,774 करोड़ का अतिरिक्त भुगतान माँगा है, जिसे कंपनी गलत ठहराते हुए कह रही है कि आकलन में कई त्रुटियाँ हैं, जिनमें राजस्व का दोहरी गिनती और पहले से किए गए भुगतान को नज़रअंदाज़ करना शामिल है।

ध्यान देने योग्य है कि सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2020 के अपने ऐतिहासिक फैसले में टेलीकॉम कंपनियों को AGR बकाया चुकाने के लिए दस साल की अवधि दी थी। उस आदेश में यह भी साफ़ कहा गया था कि देनदारियों का पुनर्मूल्यांकन (reassessment) नहीं होगा। अदालत ने कंपनियों को मार्च 2021 तक कुल बकाया का 10% अग्रिम जमा करने और शेष रकम 2031 तक वार्षिक किस्तों में चुकाने का निर्देश दिया था।

इसके बावजूद वोडाफोन आइडिया पर अब भी भारी वित्तीय बोझ बना हुआ है। DoT के अनुसार कंपनी पर ₹58,000 करोड़ से अधिक का बकाया है, जबकि कंपनी का दावा है कि उसने पहले ही बड़ा हिस्सा चुका दिया है। इसके साथ ही, कंपनी पर अगले दो दशकों तक फैली स्पेक्ट्रम किस्तों और अन्य वित्तीय दायित्वों का भी दबाव है।

नया आवेदन AGR की परिभाषा को चुनौती नहीं देता, बल्कि सिर्फ़ DoT की गणना की सटीकता पर सवाल उठाता है। कंपनी का कहना है कि गलत आकलन के चलते उस पर अनुचित बोझ डाला जा रहा है। इस मामले का नतीजा वोडाफोन आइडिया के भविष्य के लिए बेहद अहम साबित हो सकता है, क्योंकि कंपनी पहले ही चेतावनी दे चुकी है कि अगर उसे पर्याप्त राहत नहीं मिली तो वित्त वर्ष 2025–26 के बाद, जब उसकी भुगतान स्थगन अवधि समाप्त होगी, वह कारोबार जारी नहीं रख पाएगी। - UNA

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कमोडिटी बाज़ार ने इस हफ्ते की शुरुआत सतर्कता के साथ की, क्योंकि निवेशक एक ओर अमेरिकी महंगाई को लेकर चिंतित हैं तो दूसरी ओर पूर्वी यूरोप में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव पर भी नज़र बनाए हुए हैं। कारोबारी अब नए संकेतों की तलाश में हैं और सभी की निगाहें आगामी यू.एस. पर्सनल कंजम्प्शन एक्सपेंडिचर (PCE) प्राइस इंडेक्स पर टिकी हैं, जिसे फेडरल रिज़र्व महंगाई का सबसे अहम पैमाना मानता है। विश्लेषकों का मानना है कि यह आंकड़ा फेड की ब्याज दर नीति की दिशा तय करने में निर्णायक साबित होगा। हाल ही में आए नीति निर्माताओं के बयानों से साफ है कि जब तक महंगाई दर स्पष्ट रूप से 2% लक्ष्य की ओर नहीं झुकती, तब तक दरों में कटौती की संभावना कम है। यदि आंकड़े अपेक्षा से मजबूत आते हैं, तो "लंबे समय तक ऊँची दरें" की धारणा और मज़बूत होगी, जिससे अमेरिकी डॉलर को सहारा मिलेगा। इसका सीधा असर सोना और तांबा जैसी कमोडिटी पर दबाव डालने के साथ-साथ औद्योगिक कच्चे माल की मांग को भी कम कर सकता है।