मुंबई (UNA) : भारतीय शेयर बाज़ार साल 2025 में कठिन दौर से गुज़र रहा है। बेंचमार्क सूचकांकों ने अब तक कमजोर रिटर्न दिए हैं और वैश्विक बाज़ारों की तुलना में पिछड़ते नज़र आ रहे हैं। ऊँचे वैल्यूएशन, सुस्त कॉरपोरेट नतीजे और लगातार हो रहे विदेशी निवेशकों के बहिर्गमन ने दलाल स्ट्रीट पर भारी दबाव डाला है।
लगातार कई वर्षों की मज़बूत बढ़त के बाद इस साल एसएंडपी बीएसई सेंसेक्स अपनी रफ़्तार बनाए रखने में नाकाम रहा है। बाज़ार विश्लेषकों का मानना है कि ऊँचे शेयर मूल्यांकन और अपेक्षाकृत कमज़ोर आय वृद्धि के बीच का असंतुलन इस गिरावट की मुख्य वजह है। कई कंपनियाँ निवेशकों की ऊँची उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाईं, जिससे बाज़ार में लंबे समय से प्रतीक्षित सुधार (करेक्शन) देखने को मिला।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) — जो आम तौर पर भारतीय बाज़ार की रैलियों के बड़े कारक रहे हैं — 2025 में शुद्ध बिकवाल (नेट सेलर) बन गए हैं। आँकड़े बताते हैं कि वैश्विक फंड अब अपनी पूँजी उन बाज़ारों में लगा रहे हैं जहाँ जोखिम-लाभ अनुपात बेहतर है। एक वरिष्ठ रणनीतिकार ने कहा, “भारत में वैल्यूएशन वास्तविक कमाई की क्षमता की तुलना में बहुत ज़्यादा खिंच गए थे।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि निवेशक अब नए आवंटन से पहले रिकवरी के स्पष्ट संकेतों का इंतज़ार कर रहे हैं।
राजनीतिक अनिश्चितता ने भी निवेशक धारणा को कमजोर किया है। आर्थिक सुधारों और नीतिगत दिशा पर अस्पष्टता के चलते कई निवेशकों ने सतर्क रुख अपनाया है, जिससे बाज़ार में उतार-चढ़ाव और बढ़ गया है।
हालाँकि, विशेषज्ञों को अब भी उम्मीद है। उनका मानना है कि यदि सरकार मज़बूत नीतिगत समर्थन देती है और कॉरपोरेट आय में सुधार होता है तो बाज़ार में वापसी संभव है। विनिर्माण और बुनियादी ढाँचे में संरचनात्मक सुधार निवेशकों का विश्वास बहाल कर सकते हैं और शेयर बाज़ार को टिकाऊ विकास पथ पर वापस ला सकते हैं।
सेंसेक्स की आगे की दिशा इस साल के बाकी समय में कॉरपोरेट नतीजों, अहम नीतिगत कदमों और वैश्विक आर्थिक हालात पर निर्भर करेगी। निवेशक बारीकी से उन संकेतों पर नज़र रखेंगे जो मौजूदा गिरावट को पलटने में अहम साबित हो सकते हैं। - UNA