बीजिंग, चीन (UNA) : – चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का स्वागत करने के लिए तैयार हैं। यह उच्च-स्तरीय सम्मेलन एक “भव्य एकजुटता प्रदर्शन” के रूप में देखा जा रहा है, जिसका उद्देश्य प्रमुख एशियाई शक्तियों और उनके सहयोगियों की एकजुट छवि प्रस्तुत करना है। यह बैठक खास इसलिए भी है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी सात साल से अधिक समय बाद चीन की यात्रा पर जा रहे हैं।
यह मुलाक़ात उस समय हो रही है जब वैश्विक शक्ति संतुलन लगातार बदल रहा है और बीजिंग अपनी केंद्रीय भूमिका को मज़बूत करने की कोशिश कर रहा है। चीन के लिए यह आयोजन न केवल रूस जैसे रणनीतिक साझेदार के साथ रिश्तों को गहराने का मौका है, बल्कि भारत के साथ 2020 के सीमा संघर्ष के बाद तनावपूर्ण संबंधों को सुधारने की दिशा में एक अहम कदम भी है।
मोदी की मौजूदगी विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जा रही है। जून 2020 में गलवान घाटी की झड़प के बाद दोनों देशों के रिश्ते दशकों में अपने सबसे निचले स्तर पर पहुँच गए थे। तब से लेकर अब तक कई दौर की सैन्य और कूटनीतिक वार्ताएं हुई हैं, लेकिन पूर्ण समाधान अभी बाकी है। यह शिखर सम्मेलन दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व को सीधे संवाद का अवसर देगा, जिससे सीमा मुद्दों के समाधान और रिश्तों की स्थिरता की दिशा में प्रगति की उम्मीद है।
भारत के लिए इस बैठक का मुख्य एजेंडा वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव घटाना और पूर्ण रूप से अलगाव सुनिश्चित करना होगा। यदि मोदी और शी जिनपिंग के बीच अलग से द्विपक्षीय बैठक होती है, तो वह आने वाले समय के रिश्तों की दिशा तय करने में निर्णायक साबित हो सकती है।
रूस के लिए पुतिन की मौजूदगी इस बात का प्रमाण है कि मॉस्को बीजिंग के साथ अपनी साझेदारी को और मज़बूत कर रहा है। पश्चिमी दबाव के बीच रूस ने एशियाई अर्थव्यवस्थाओं, विशेषकर भारत और चीन, के साथ सहयोग को अपनी विदेश नीति का अहम हिस्सा बना लिया है। तीनों नेताओं की साझा उपस्थिति इस त्रिपक्षीय समीकरण को और गहराई देने का संकेत देती है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह बैठक केवल द्विपक्षीय रिश्तों तक सीमित नहीं है, बल्कि उभरते हुए “बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था” में भी इसका महत्व है। यह मंच एशियाई शक्तियों को क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और वैश्विक शासन जैसे मुद्दों पर पश्चिम-प्रधान ढाँचों के विकल्प पेश करने का अवसर देता है।
हालाँकि चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। भारत-चीन रिश्तों में ऐतिहासिक अविश्वास और सीमा विवाद अब भी बने हुए हैं। भारत के लिए एक ओर चीन और रूस के साथ संतुलन साधना है, तो दूसरी ओर अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ गहराते रिश्तों को भी बनाए रखना है। वहीं रूस और चीन के बीच रणनीतिक निकटता तो मज़बूत है, लेकिन भारत के साथ उनके रिश्तों की अपनी अलग जटिलताएँ हैं।
इसके बावजूद, चीन, भारत और रूस के नेताओं का एक साथ मंच साझा करना अपने आप में एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक उपलब्धि है। यह इस बात का प्रतीक है कि संवाद और सहयोग की इच्छा अब भी मौजूद है। आने वाले समय में इस सम्मेलन से निकलने वाले ठोस नतीजे, विशेषकर भारत-चीन सीमा वार्ता पर प्रगति, एशियाई स्थिरता का अहम पैमाना होंगे।
आख़िरकार, बीजिंग शिखर सम्मेलन केवल उच्च-स्तरीय बैठकों का सिलसिला नहीं है, बल्कि एक सधे हुए तरीके से रचा गया आयोजन है जो वैश्विक राजनीति को एक शक्तिशाली संदेश भेजने के लिए डिज़ाइन किया गया है। अब देखना यह होगा कि यह “भव्य एकजुटता प्रदर्शन” वास्तविक विवादों पर ठोस प्रगति लाता है या सिर्फ साझा आकांक्षाओं की नुमाइश भर साबित होता है। - UNA