वॉशिंगटन (UNA) : – अमेरिका की एक संघीय अपील अदालत ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन को बड़ा झटका देते हुए कहा है कि उसने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का दायरा पार करते हुए स्टील और एल्युमीनियम आयात पर व्यापक टैरिफ लगाए थे। अदालत के इस फ़ैसले से अरबों डॉलर की वसूली गई टैक्स राशि पर अब कानूनी अनिश्चितता मंडरा रही है।
फेडरल सर्किट की अपील कोर्ट ने 2-1 के बहुमत से दिए गए फ़ैसले में माना कि ट्रंप प्रशासन ने 2018 में टैरिफ का विस्तार करते समय कांग्रेस द्वारा निर्धारित कानूनी समयसीमा का पालन नहीं किया। अदालत ने साफ़ कहा कि “राष्ट्रपति की शक्तियाँ असीमित नहीं हैं, और जब कानून में समयसीमा तय है, तो उसके बाद जारी घोषणाएँ अमान्य मानी जाएंगी।”
यह मामला अमेरिकी कंपनियों, जिनमें स्टील आयातक ट्रांसपैसिफ़िक स्टील LLC भी शामिल है, द्वारा दायर किया गया था। उनका तर्क था कि ट्रेड एक्सपेंशन एक्ट, 1962 की धारा 232 के तहत राष्ट्रपति की शक्तियाँ सीमित हैं और उन्हें मनमाने ढंग से नहीं बढ़ाया जा सकता। अदालत ने इस तर्क को स्वीकारते हुए माना कि कानूनी समयसीमा पार करने के बाद जारी टैरिफ आदेश अवैध हैं।
हालांकि अदालत के इस फ़ैसले से टैरिफ तुरंत हटेंगे नहीं। अभी भी अधिकांश देशों से आयात पर ये शुल्क लागू हैं। बाइडेन प्रशासन, जिसने ट्रंप के ज़्यादातर टैरिफ को जारी रखा है और यूरोपीय संघ जैसे कुछ देशों के लिए इन्हें टैरिफ-रेट कोटा से बदला है, अब अगला क़दम तय करेगा।
न्याय विभाग (Justice Department) इस फ़ैसले को चुनौती दे सकता है – या तो पूरे फेडरल सर्किट में पुनर्विचार की मांग करके या फिर सीधे सुप्रीम कोर्ट में अपील करके। अगर यह फ़ैसला बरकरार रहता है, तो जिन कंपनियों ने टैरिफ चुकाया है, वे अरबों डॉलर की वापसी की हक़दार हो सकती हैं, जिससे अमेरिकी सरकार पर भारी वित्तीय दबाव पड़ेगा।
पैसों से परे, यह निर्णय अमेरिकी व्यापार नीति के लिए भी दूरगामी असर रखता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला “राष्ट्रीय सुरक्षा” के नाम पर टैरिफ लगाने की राष्ट्रपति की शक्तियों की सीमा तय कर सकता है, और भविष्य की व्यापार नीतियों में कार्यपालिका पर न्यायपालिका का नियंत्रण और स्पष्ट होगा।
फिलहाल, ट्रंप के “अमेरिका फ़र्स्ट” व्यापार एजेंडे के सबसे चर्चित पहलुओं में से एक पर कानूनी लड़ाई जारी है। आयातक कंपनियाँ, औद्योगिक समूह और विदेशी सरकारें बारीकी से देख रही हैं कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाता है या नहीं। - UNA