नई दिल्ली (UNA) : – अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर 50% का भारी-भरकम टैरिफ लागू कर दिया है। यह नया शुल्क ढांचा 6 अगस्त को जारी कार्यकारी आदेश (Executive Order) के तहत लागू किया गया, जिसमें पहले 25% का पारस्परिक शुल्क और फिर अतिरिक्त 25% का शुल्क जोड़ा गया है। यह दूसरा हिस्सा खास तौर पर भारत द्वारा रूसी तेल की लगातार खरीद से जुड़ा है। अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि यह कदम यूक्रेन युद्ध के बीच रूस पर दबाव बढ़ाने के उद्देश्य से उठाया गया है। होमलैंड सिक्योरिटी विभाग ने पुष्टि की है कि यह शुल्क 27 अगस्त की रात 12:01 बजे (EDT) से उन सभी भारतीय मूल के सामानों पर लागू होगा जो अमेरिका में प्रवेश करेंगे। हालांकि, पहले से रास्ते में मौजूद या कुछ विशेष शर्तों के अंतर्गत मध्य सितंबर तक पहुँचने वाले जहाज़ों को अस्थायी छूट दी जाएगी।
यह व्यापक बढ़ोतरी भारत के कपड़ा उद्योग, रत्न-आभूषण, चमड़ा, मशीनरी, फर्नीचर और समुद्री उत्पादों जैसे प्रमुख निर्यात क्षेत्रों पर गहरा असर डाल सकती है। अनुमान है कि इस टैरिफ से अमेरिका को होने वाले भारतीय निर्यात में 20–45% तक की गिरावट आ सकती है। इसका सीधा असर रुपये की मजबूती, शेयर बाजार और रोजगार पर भी पड़ेगा। विशेषकर सूरत का हीरा उद्योग, जो पहले से ऑर्डरों में गिरावट और छंटनी झेल रहा है, अब और संकट में घिर सकता है।
अमेरिका का आधिकारिक तर्क है कि यह कदम रूस की तेल से होने वाली आय को सीमित करने और उसकी वित्तीय क्षमता को कमजोर करने के लिए है। उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने इसे “आक्रामक आर्थिक दबाव (aggressive economic leverage)” बताते हुए कहा कि इस रणनीति से रूस को मिलने वाला तेल राजस्व घटाना ही मुख्य उद्देश्य है।
वहीं, भारत ने इन शुल्कों को “अनुचित, अन्यायपूर्ण और अव्यवहारिक” बताते हुए कड़ी प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि भारत के ऊर्जा संबंधी निर्णय केवल राष्ट्रीय हित और 1.4 अरब की आबादी के लिए सस्ती आपूर्ति सुनिश्चित करने की आवश्यकता से प्रेरित हैं।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, मोदी प्रशासन इस आर्थिक झटके से निपटने के लिए विकल्प तलाश रहा है। इनमें निर्यात के नए बाजारों (चीन, लैटिन अमेरिका और मध्य-पूर्व) की ओर रुख करना, प्रभावित उद्योगों को वित्तीय राहत देना और विशेषकर कपड़ा तथा आभूषण क्षेत्र के लिए ड्यूटी ड्रॉबैक एवं सरकारी सहायता जैसे कदम शामिल हैं। कूटनीतिक स्तर पर भी नई दिल्ली हालात का आकलन कर रही है और संभावना जताई जा रही है कि आगामी संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN Assembly) में इस मुद्दे पर चर्चा हो सकती है। वहाँ राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात की संभावना भी व्यक्त की जा रही है, जो संवाद का एक अहम मंच बन सकती है।
अमेरिका-भारत संबंधों में यह अभूतपूर्व टकराव पिछले दो दशकों में हुए रणनीतिक सहयोग को गहरे संकट में डाल सकता है। विश्लेषकों का कहना है कि यदि स्थिति जल्द न सुलझी, तो भारत रूस और चीन के और करीब जा सकता है, जिससे वैश्विक भू-राजनीतिक संतुलन पर भी दूरगामी असर पड़ सकता है। - UNA