मुंबई (UNA) : भारत की कॉरपोरेट कंपनियों का कानूनी और पेशेवर सेवाओं पर खर्च पिछले वित्तीय वर्ष में 11% बढ़कर ₹62,146 करोड़ तक पहुँच गया। इसके पीछे मुख्य कारण वैश्विक विस्तार, बढ़ते विवाद और जटिल होते जा रहे नियामकीय ढाँचे बताए जा रहे हैं।
निफ़्टी 500 कंपनियों के विश्लेषण से पता चलता है कि सीमा-पार मर्जर और एक्विज़िशन (M&A) इस बढ़ोतरी का प्रमुख कारक रहे। भारतीय कंपनियों के विदेशी सौदों के लिए विस्तृत ड्यू डिलिजेंस, मध्यस्थता प्रावधान और कई कानूनी प्रणालियों का अनुपालन करना पड़ा, जिससे पेशेवर सेवाओं का खर्च और बढ़ गया।
सबसे ज़्यादा खर्च करने वाली कंपनियों में रिलायंस इंडस्ट्रीज़, सन फ़ार्मास्युटिकल, कोफ़ोर्ज, इंफ़ोसिस और लार्सन एंड टूब्रो (L&T) शामिल हैं। इनकी विशाल कारोबारी गतिविधियाँ, लगातार होने वाले सौदे और वैश्विक स्तर पर मज़बूत मौजूदगी इनके अधिक खर्च का कारण मानी जाती है।
M&A के अलावा, कंपनियों ने मुक़दमों और विवाद निपटान पर भी खर्च बढ़ाया है। प्रतिस्पर्धी कारोबारी माहौल ने व्यावसायिक विवादों को बढ़ावा दिया है, जबकि डेटा सुरक्षा, पर्यावरण मानक और ESG (पर्यावरण, सामाजिक और प्रशासनिक) नियमों जैसी अनुपालन ज़रूरतों ने अतिरिक्त कानूनी निगरानी की मांग की है।
हालाँकि, बढ़े हुए खर्च के बावजूद यह कंपनियों की कुल आय के अनुपात में अपेक्षाकृत मामूली ही है। निफ़्टी 500 कंपनियों की कुल आय में ₹62,146 करोड़ का यह खर्च सिर्फ़ 0.39% बैठता है। विश्लेषकों का मानना है कि यह रुझान इस हक़ीक़त को दर्शाता है कि भारतीय कंपनियाँ वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए आगे बढ़ रही हैं और सख़्त होती नियामकीय जाँच के बीच कानूनी खर्च भविष्य में और बढ़ने की संभावना है। - UNA