नई दिल्ली (UNA) : वाशिंगटन में एच-1बी वीज़ा शुल्क को अभूतपूर्व स्तर पर 1 लाख डॉलर तक बढ़ाने के प्रस्ताव ने भारत में चिंता पैदा कर दी है। अधिकारियों और उद्योग जगत का मानना है कि ऐसा कदम वैश्विक प्रौद्योगिकी परिदृश्य को गहराई से बदल सकता है। भारतीय सरकार पहले ही NASSCOM और वॉशिंगटन स्थित दूतावास के साथ उच्च-स्तरीय चर्चाएँ शुरू कर चुकी है ताकि संभावित प्रभावों का आकलन किया जा सके।
एच-1बी वीज़ा लंबे समय से अमेरिकी कंपनियों के लिए कुशल विदेशी पेशेवरों, खासकर भारतीय इंजीनियरों और आईटी विशेषज्ञों को नियुक्त करने का अहम जरिया रहा है। भारतीय आईटी सेवा कंपनियाँ और अमेरिकी टेक दिग्गज दोनों इस कार्यक्रम पर निर्भर हैं, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि भारी बढ़ोतरी का सबसे बड़ा असर अमेरिकी कंपनियों पर पड़ेगा, क्योंकि उनका वैश्विक प्रतिभा भर्ती पर सीधा निर्भरता अधिक है।
एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी ने कहा कि यदि यह प्रस्ताव लागू होता है, तो यह भारत में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) के विस्तार को तेज कर सकता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ संभवतः अपने कर्मचारियों को अमेरिका भेजने के बजाय भारत में ही उन्नत अनुसंधान और तकनीकी केंद्र स्थापित करना अधिक किफ़ायती पाएँगी। इससे नवाचार, अनुसंधान एवं विकास और उन्नत तकनीकी परिचालन से जुड़े उच्च-मूल्य वाले रोज़गार भारत में स्थानांतरित हो सकते हैं।
फिलहाल एच-1बी आवेदन शुल्क कुछ हज़ार डॉलर तक सीमित है। ऐसे में इसे सीधे 1 लाख डॉलर तक बढ़ाना आईटी क्षेत्र के लिए भूचाल जैसा होगा, जिसके व्यापक असर पूरी दुनिया में महसूस किए जाएँगे।
हालाँकि प्रस्ताव के विधायी रूप से पास होने की संभावनाएँ अभी अनिश्चित हैं, लेकिन इसकी चर्चा ने ही टेक उद्योग में हलचल मचा दी है और अमेरिका में आव्रजन, नौकरियों और प्रतिस्पर्धा पर बहस को फिर से तेज़ कर दिया है। भारत के लिए यह स्थिति दोधारी तलवार साबित हो सकती है — एक ओर अमेरिकी अवसरों के लिए करियर पाइपलाइन बाधित होगी, वहीं दूसरी ओर भारत की वैश्विक तकनीकी केंद्र के रूप में स्थिति और मज़बूत हो सकती है। - UNA