Kolkata (UNA) : – कोलकाता में सियासी हलचल तेज हो गई है। पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (TMC) को अब विपक्षी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) – CPI(M) ने सीधी चुनौती दी है। CPI(M) के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद मोहम्मद सलीम ने ममता सरकार से मांग की है कि वह उन राज्यों में अपने सांसदों का प्रतिनिधिमंडल भेजे जहां बंगाली भाषी प्रवासी मजदूरों के साथ कथित रूप से भेदभाव और पहचान को लेकर पूछताछ की जा रही है।
मोहम्मद सलीम ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, “अगर सच में तृणमूल कांग्रेस को बंगाली मजदूरों की फिक्र है, तो उन्हें सिर्फ कोलकाता में बयानबाजी करने से बचना चाहिए। मुख्यमंत्री को चाहिए कि वे टीएमसी सांसदों को उन राज्यों में भेजें जहां ये घटनाएं हो रही हैं। वहां जाकर ज़मीनी हालात का जायज़ा लें और प्रवासी मजदूरों के साथ खड़े हों।”
यह बयान ऐसे समय आया है जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और टीएमसी के अन्य नेताओं ने हाल ही में कर्नाटक, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बंगाली मजदूरों के साथ कथित भेदभाव को लेकर चिंता जताई थी। टीएमसी ने इसे राजनीतिक कारणों से हो रहा व्यवस्थित उत्पीड़न बताया था। लेकिन CPI(M) अब सवाल उठा रही है कि केवल बयान देने से कुछ नहीं होगा, असली ज़िम्मेदारी है ज़मीनी स्तर पर हस्तक्षेप करना।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि CPI(M) का यह कदम न सिर्फ टीएमसी के रुख को चुनौती देता है, बल्कि यह दिखाने की कोशिश करता है कि टीएमसी की बातों और उसके कार्यों में बड़ा अंतर है। CPI(M) इस मुद्दे को लेकर खुद को ज़्यादा गंभीर और जवाबदेह दिखाने की कोशिश कर रही है।
गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल से बड़ी संख्या में लोग रोज़गार की तलाश में देश के अलग-अलग राज्यों में जाते हैं। ऐसे में प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा और सम्मान का मुद्दा हमेशा से राजनीतिक बहस का केंद्र रहा है।
फिलहाल, टीएमसी की ओर से CPI(M) की इस मांग पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन यह बात तय है कि राज्य की राजनीति में विपक्ष और सरकार के बीच प्रवासी मजदूरों को लेकर सियासी तकरार और तेज़ हो गई है।
इस पूरे घटनाक्रम को आने वाले दिनों में बंगाल की राजनीति में एक बड़े मुद्दे के रूप में देखा जा रहा है, खासकर तब जब देशभर में पहचान, भाषा और प्रवासन से जुड़े मुद्दे लगातार संवेदनशील होते जा रहे हैं। - UNA