नई दिल्ली (UNA) : देशभर के हज़ारों बीमा एजेंटों द्वारा कमीशन में हालिया कटौती को वापस लेने और सरकारी हस्तक्षेप की मांग को लेकर उठाई गई आवाज़ को वस्तु एवं सेवा कर (GST) परिषद से राहत मिलने की संभावना बेहद कम नज़र आ रही है। अधिकारियों के अनुसार, यह मामला कर नीति से अधिक एक उद्योग-स्तरीय व्यावसायिक विवाद माना जा रहा है, जिस पर परिषद का सीधा अधिकार नहीं है। यह विवाद जुलाई 2023 में हुई GST परिषद की 50वीं बैठक से जुड़ा है, जिसमें बीमा प्रीमियम पर GST दर 18% से बढ़ाकर 21% कर दी गई थी। यह फैसला कर ढांचे को “सरल और संतुलित” करने के उद्देश्य से लिया गया था, लेकिन इसके अप्रत्याशित असर के चलते कई बीमा कंपनियों ने एजेंटों के कमीशन में बड़ी कटौती कर दी। देशभर में लाखों बीमा एजेंटों की मुख्य आय का स्रोत यही कमीशन है, खासकर टियर-2, टियर-3 शहरों और ग्रामीण इलाकों में, जहाँ वे लोगों तक बीमा उत्पाद और जागरूकता पहुँचाने में अहम भूमिका निभाते हैं। एक राज्य स्तरीय एजेंट संघ के प्रतिनिधि ने बताया, “GST बढ़ोतरी का असर कंपनियों ने ग्राहकों पर नहीं डाला, बल्कि हमारे कमीशन में 40–50% तक कटौती कर दी। अगर यह जारी रहा, तो हज़ारों एजेंट इस पेशे को छोड़ने पर मजबूर हो जाएंगे।” फेडरेशन ऑफ इंडियन एजेंट्स एसोसिएशंस (FIAA) जैसी संस्थाओं ने इसे एजेंट समुदाय के लिए गंभीर संकट बताया है। उनका कहना है कि सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि GST परिषद या भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) कोई ठोस समाधान निकाल सके। हालांकि, एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने स्पष्ट किया कि यह मामला GST परिषद के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। “परिषद की भूमिका केवल बीमा सेवाओं पर कर दर तय करने तक सीमित है,” अधिकारी ने कहा। “कंपनियाँ अपने आंतरिक खर्च और कमीशन संरचना को कैसे प्रबंधित करती हैं, यह उनका व्यावसायिक निर्णय है, न कि कर नीति का विषय।” यह स्थिति राजकोषीय नीति और व्यावसायिक नियमन के बीच स्पष्ट विभाजन को दर्शाती है। परिषद केवल कर निर्धारण करती है — कंपनियों के लाभ-वितरण या कमीशन मॉडल तय करना उसका दायरा नहीं है। बीमा उद्योग की प्रतिक्रिया इस पर मिश्रित रही है। कंपनियों का कहना है कि GST दर बढ़ने से उनके खर्च अनुपात (expense ratio) पर सीधा असर पड़ा, और ग्राहकों पर अतिरिक्त बोझ डालने से बचने के लिए उन्होंने वितरण लागत (distribution cost) — यानी एजेंट कमीशन — में समायोजन किया। वित्तीय विश्लेषकों के अनुसार, यह निर्णय व्यापारिक विवेक से जुड़ा है, न कि नीति की विफलता से। मुंबई के एक विश्लेषक ने कहा, “GST बढ़ोतरी और कमीशन कटौती का संबंध अप्रत्यक्ष है। कंपनियों के पास कई विकल्प थे — प्रीमियम बढ़ाना, खर्च घटाना या कमीशन कम करना। उन्होंने कमीशन को इसलिए चुना क्योंकि यह सबसे लचीला व्यय है।” दूसरी ओर, एजेंटों का कहना है कि जब नीति परिवर्तन की वजह से यह स्थिति बनी है, तो सरकार को उसके परिणामों की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए। अब जबकि GST परिषद से राहत की उम्मीद कम होती दिख रही है, एजेंट संगठनों को या तो बीमा कंपनियों से सीधे बातचीत करनी होगी या IRDAI से उचित पारिश्रमिक के लिए दिशा-निर्देश मांगने होंगे। लेकिन, चूँकि IRDAI परंपरागत रूप से कमीशन संरचना में दखल नहीं देता, यह रास्ता भी आसान नहीं होगा - UNA
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