अहमदाबाद (UNA) : गुजरात हाईकोर्ट ने एक अहम फ़ैसले में कहा है कि यदि किसी न्यायिक अधिकारी पर एक भी प्रतिकूल टिप्पणी हो जाए या उसकी ईमानदारी पर ज़रा-सा भी संदेह उठे, तो यह सार्वजनिक हित में अनिवार्य सेवानिवृत्ति (compulsory retirement) देने के लिए पर्याप्त आधार होगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस तरह के मामले में न तो कारण बताओ नोटिस (show-cause notice) देना ज़रूरी है और न ही औपचारिक जांच करना आवश्यक है।
पीठ ने स्पष्ट किया कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति दंडात्मक कार्रवाई नहीं है, बल्कि एक प्रशासनिक कदम है, जिसका उद्देश्य न्यायपालिका की साख और विश्वसनीयता बनाए रखना है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह प्रक्रिया बर्खास्तगी या सेवा से हटाने जैसी कार्रवाई से भिन्न है, क्योंकि उनमें अनुशासनात्मक कार्यवाही ज़रूरी होती है।
फ़ैसले में कहा गया कि अधिकारी की पूरी सेवा अवधि का रिकॉर्ड देखा जा सकता है, लेकिन यदि एक भी प्रतिकूल टिप्पणी या ईमानदारी को लेकर गंभीर शंका हो, तो वह पर्याप्त होगी। रिकॉर्ड में मौजूद सकारात्मक टिप्पणियां भी ऐसे संदेह को स्वतः ही निष्प्रभावी नहीं कर सकतीं।
अदालत ने कहा कि न्यायिक अधिकारियों से उच्चतम मानकों की अपेक्षा की जाती है और यह कदम जनता के विश्वास को बनाए रखने तथा न्यायपालिका को संदेह से परे सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है। – UNA
















