नई दिल्ली, भारत (UNA) : मोटर-बीमा लेते समय वाहन मालिकों द्वारा अक्सर अनदेखा किया जाने वाला लेकिन बेहद महत्वपूर्ण घटक है इंस्योर्ड डिक्लेयर्ड वैल्यू (IDV)। यह उस राशि का प्रतिनिधित्व करती है जो निर्माता द्वारा दिए गए एक्स-शोरूम प्राइस से वाहन की आयु, उपयोग एवं बाजार मूल्य को घटा कर तय की जाती है। यह राशि वाहन चोरी या उसके पूरी तरह से क्षतिग्रस्त होने की स्थिति में भुगतान की जाने वाली अधिकतम राशि बन जाती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि IDV बहुत कम रखने पर प्रीमियम certes कम होगा, लेकिन यदि वाहन चोरी हो जाए या पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाए, तो भुगतान भी कम मिलेगा।
उधर, IDV बहुत अधिक रखने पर प्रीमियम अनावश्यक रूप से बढ़ता है और बीमाकर्ता क्लेम के समय बहुत ऊँचे घोषित मूल्य को विवादित मान सकता है।
IDV तय करते समय जानकार यह सुझाव देते हैं: पहले वाहन के वर्तमान बाजार मोल-भाव की जांच करें, उसी मॉडल-वेरिएंट की विक्रय-सूची देखें, साथ ही निर्धारण-मानक डिप्रिशिएशन दरों को भी ध्यान में रखें।
नवीनीकरण के समय वाहन मालिक को बीमाकर्ता द्वारा दिए गए IDV प्रस्ताव को अनदेखा नहीं करना चाहिए। यदि वाहन अच्छी स्थिति में है या माइलेज कम है, तो थोड़ा अधिक IDV पर भी चर्चा संभव है। इस प्रकार, प्रीमियम व क्लेम दोनों के बीच एक संतुलन बैठाना संभव हो जाता है। - UNA
















